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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palडॉ॰ आरती ‘लोकेश’ गोयल का यह उपन्यास ‘ऋतंभरा के 100 द्वीप’ विस्तार और पेचीदगी के साथ विशिष्ट मानव जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से संबंधित वास्तविक एवं काल्पनिक घटनाओं द्वारा मानव जीवन के रहस्य का रसात्मक रूप से उद्घाटन करता है। प्रकारांतर से यह उपन्यास लगभग सौ वर्ष के काल्पनिक इतिहास को समेटे हुए है। सत्ता के लिए रक्तपात के साथ-साथ, मानव-मानव के बीच प्रेम, भाईचारे, मानव-कल्याण की भी समष्टि की गयी है। प्रारंभ में लगेगा कि यह पौराणिक काल की कथा है तो कभी लगेगा कि ये पूरा का पूरा जासूसी उपन्यास है। मगर अंत तक पहुँचते-पहुँचते उसे भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना का भान होने लगेगा। इसमें अतीत से वर्तमान का टकराव है, तो समन्वय भी है और भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठापना भी है। नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के अंतर्द्वंद्व है और समझौतावादी नीति भी और अंततः अपने-अपने लक्ष्यों तक पहुँचने की सफलता भी। उपन्यास में स्थान-स्थान पर प्रयुक्त नीतिवाक्यों, मुहावरों और लोकोक्तियों ने पठनीयता में चार चाँद लगा दिए हैं, जो लेखिका के अनवरत अध्ययन एवं अनुशीलन का सुपरिणाम हैं। यह उपन्यास पाठकों के मर्म को छूने में सफल है। डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ का कथन साहित्य मानवीय संबंधों की नई जटिलताओं के इर्द-गिर्द घूमता है। यह उपन्यास भी उसी प्रकार आदमी से आदमी के रिश्ते की कुछ असंभव-सी परिस्थिति को सामने लाता है। उत्कर्ष बिंदु अंत में आता है। यह उत्कर्ष बिंदु जितना जटिल लगता है, उतना ही जीने का अदम्य साहस व उत्साह भी रेखांकित करने वाला है। यह उपन्यास प्रवासी हिंदी साहित्य के लिए बहुमूल्य उपहार सिद्ध होगा। निश्चय ही पाठक मेरी तरह उपन्यास को पढ़ लेने पर फिर से नाता तोड़ लेने में कदापि समर्थ न होंगे।
डॉ.आरती 'लोकेश'
डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने अंग्रेज़ी साहित्य मास्टर्स में कॉलेज में द्वितीय स्थान तथा हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि ली। तीन दशकों से शिक्षाविद डॉ. आरती ‘लोकेश’ शारजाह में वरिष्ठ प्रशासनिक अध्यक्ष हैं और साहित्य की सतत सेवा में लीन हैं।
बीस वर्षों से दुबई में बसी डॉ. आरती ‘लोकेश’ द्वारा रचित 14 पुस्तकें प्रकाशित हैं। तीन उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’, ‘कारागार’, ‘निर्जल सरसिज’; तीन काव्य-संग्रह ‘काव्य रश्मि’ ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’, ‘प्रीत बसेरा’; दो कहानी संग्रह ‘साँच की आँच’ व ‘कुहासे के तुहिन’, कथेतर गद्य-संग्रह ‘कथ्य अकथ्य’, यात्रा-संस्मरण ‘झरोखे’; शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय का गद्य साहित्य और सामाजिक चेतना’; तीन संपादित: ‘सोच इमाराती चश्मे से’, ‘होनहार बिरवान’, ‘डॉ. अशोक कुमार मंगलेश : काव्य एवं साहित्य चिंतन’। इनके साहित्य पर पंजाब व हरियाणा के विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया जा रहा है।
'अनन्य यू.ए.ई.' पत्रिका की मुख्य संपादक होने के साथ-साथ वे ‘श्री रामचरित भवन ह्यूस्टन’ की सह-संपादिका तथा ‘इंडियन जर्नल ऑफ़ सोशल कंसर्न्स’ की अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय संपादक हैं। प्रणाम पर्यटन पत्रिका की विशेष संवाददाता यूएई हैं। टैगोर विश्वविद्यालय ‘विश्वरंग महोत्सव’ की यू.ए.ई. निदेशिका, ‘विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस’ की यू.ए.ई हिंदी दिवस 2021 समन्वयक हैं।
उनकी रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘शोध दिशा’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती, ‘गर्भनाल’, ‘वीणा’, ‘परिकथा’, ‘दोआबा’, ‘समकालीन त्रिवेणी’, ‘साहित्य गुंजन’, ‘संगिनी’, ‘सृजन महोत्सव’, ‘साहित्य त्रिवेणी’, ‘अक्षरा’, ‘नवचेतना’, ‘बाल किरण’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘अनुभूति, ‘सौरभ’, ‘मुक्तांचल’, ‘विश्वरंग’, ‘21 युवामन की कहानियाँ’, ‘कथारंग’, ‘विवशता’, ‘रिश्ता’ तथा ‘सोच’ में प्रकाशित हुई हैं। आलेख: ‘खाड़ी तट पर खड़ी हिंदी’ ‘हिंदुस्तानी भाषा भारती’ तथा सांस्कृतिक आलेख ‘वीणा’ में जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। यात्रा संस्मरण- ‘प्रणाम पर्यटन’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुए। शोध-पत्र, लेख, लघुकथाएँ एवम् कविताएँ आदि विभिन्न साझा-संग्रहों
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