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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalDr. Arti ‘Lokesh’ has authored 20 publications, including 4 novels, 4 poem collections, 3 story books, 2 articles books, a travelogue book, a research book and 5 edited-compiled books, besides collaborating on many projects, editor, co-editor, reviewer, speaker, moderator, panelist or chief guest in international discussions. Main organization she has association with are Banasthali Vidyapith, Tagore University, World Hindi Secretariat Mauritius, Shri Ram Charit Manthan, Indian Journal of Social Concerns etc. Her untold feelings unfolded in the form of poems she wrote. She has marked Read More...
Dr. Arti ‘Lokesh’ has authored 20 publications, including 4 novels, 4 poem collections, 3 story books, 2 articles books, a travelogue book, a research book and 5 edited-compiled books, besides collaborating on many projects, editor, co-editor, reviewer, speaker, moderator, panelist or chief guest in international discussions.
Main organization she has association with are Banasthali Vidyapith, Tagore University, World Hindi Secretariat Mauritius, Shri Ram Charit Manthan, Indian Journal of Social Concerns etc.
Her untold feelings unfolded in the form of poems she wrote. She has marked her presence on the very prestigious Kavita Kosh page too with more than 50 poems. Her books have been reviewed by popular authors and critics. In prestigious universities of Punjab and Haryana, Ph.D. students are pursuing research on her books.
The stories she pens are plucked from her surroundings and what she observes in her day-to-day life. These have been proudly published in multiple magazines as Shodh Disha, Indraprasth Bharti, Garbhnal, Veena, Parikatha, Doaba, Samkaleen Triveni, Pranam Paryatan, Sahitya Gunjan, Srijan Mahotsav, Sangini and Muktanchal.
Her travelogues are evidence of her outgoing and exploring nature which are part of many editions of magazine Pranam Paryatan.
Her articles on the rich culture and heritage of the gulf countries and Hindi in UAE are widely appreciated and published in many reputed magazines including ‘Hindustani Bhasha Bharti’. Articles in English were published in the UAE magazine ‘FRIDAY’.
She is also a significant contributor to many journals and books such as Drishta, Seep mein Samudra, Ram Kavya Piyush, Ramayan ke Moti, Krishna Kavya Piyush, Ram Hyku Piyush, Katharang, Maan, Korona, Sahitya Swar, Soch -Emarati Chashme se, 21 Shreshtha Yuvaman ki kahaniyan etc.
She has been awarded by the most prestigious award 'Creative Writing in Diaspora Hindi Literature' by Mauritius government and Mahatma Gandhi Institute, Moka. Consul General of India in UAE, Dr. Aman Puri. She is honored by Consul General of India in UAE, Dr. Aman Puri. Her literature has been decorated with ‘Prawasi Bhartiya Samaras Shri Sahitya Samman’, ‘Nirmala Smriti Sahitya Ratna Samman’. She received appreciation from ‘World book of records, London’, ‘Shubh Sankalp and Hunorfox acedemy’, ‘Vaishvik Hindi Sansthan, Huston’, ‘Shaikshik Agaaz’, ‘Little Help Trust’ and many more. She has been declared one of 101 most effective women in the world by Radio ‘Meri Awaz’
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‘सात समुंदर पार’ डॉ. आरती ‘लोकेश’ की 23वीं पुस्तक है। इसके अतिरिक्त उनके 4 उपन्यास, 4 कहानी-संग्रह, 4 काव्य-संग्रह, 4 गद्य-संकलन तथा 6 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं।
भारत से अमेरि
‘सात समुंदर पार’ डॉ. आरती ‘लोकेश’ की 23वीं पुस्तक है। इसके अतिरिक्त उनके 4 उपन्यास, 4 कहानी-संग्रह, 4 काव्य-संग्रह, 4 गद्य-संकलन तथा 6 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं।
भारत से अमेरिका, सात समुन्दर पार कहलाता आया है। ‘सात समुन्दर पार’ पुस्तक अमेरिका के 4 बड़े शहरों के दर्शनीय स्थलों की सम्पूर्ण जानकारी देती है। इसमें नियाग्रा, वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क तथा बोस्टन में पर्यटन का सम्पूर्ण विवरण निहित है।
कहते हैं कि यदि भारत में पृथ्वी को गहरा खोदना शुरु करो तो यह सुरंग अमेरिका में खुलेगी। दिन-रात के समयांतर पर बसे देश अमेरिका के नीलाभ गगन और सिंधु-हरित सागर के बीच बसने वाली भूमि पर बिखरी प्रकृति-मुक्ताओं और मानव-निर्मितियों का अवलोकन कर इस पुस्तक की सृष्टि की गई है। अनुभव, अहसास और बोध के शब्दों से युक्त इसमें पूर्वी हिस्से के प्रमुख शहरों के चित्रात्मक वृत्तांत दर्ज हैं।
पुस्तक बताती है कि अमेरिका में सभी प्रकार के पर्यटकों का मन बहलाने के लिए पर्याप्त सामग्री है। इसी कारण अमेरिका घूमने सारे विश्व के घुमक्कड़ी-प्रेमी आना चाहते हैं। यहाँ के स्मारक अपने भूत को बाँचते हैं, वर्तमान को सूचित करते हैं व भविष्य को इंगित करते हैं। यहाँ आमोद-प्रमोद का प्रबंध है, संताप से निकल आगे बढ़ने का संदेश भी है और वेदना के जाल को चीरते हुए नए उत्साह-ऊर्जा-ऊष्मा से नई किरण का स्वागत भी है।
‘सात समुंदर पार’ डॉ. आरती ‘लोकेश’ की 23वीं पुस्तक है। इसके अतिरिक्त उनके 4 उपन्यास, 4 कहानी-संग्रह, 4 काव्य-संग्रह, 4 गद्य-संकलन तथा 6 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं।
भारत से अमेरि
‘सात समुंदर पार’ डॉ. आरती ‘लोकेश’ की 23वीं पुस्तक है। इसके अतिरिक्त उनके 4 उपन्यास, 4 कहानी-संग्रह, 4 काव्य-संग्रह, 4 गद्य-संकलन तथा 6 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं।
भारत से अमेरिका, सात समुन्दर पार कहलाता आया है। ‘सात समुन्दर पार’ पुस्तक अमेरिका के 4 बड़े शहरों के दर्शनीय स्थलों की सम्पूर्ण जानकारी देती है। इसमें नियाग्रा, वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क तथा बोस्टन में पर्यटन का सम्पूर्ण विवरण निहित है।
कहते हैं कि यदि भारत में पृथ्वी को गहरा खोदना शुरु करो तो यह सुरंग अमेरिका में खुलेगी। दिन-रात के समयांतर पर बसे देश अमेरिका के नीलाभ गगन और सिंधु-हरित सागर के बीच बसने वाली भूमि पर बिखरी प्रकृति-मुक्ताओं और मानव-निर्मितियों का अवलोकन कर इस पुस्तक की सृष्टि की गई है। अनुभव, अहसास और बोध के शब्दों से युक्त इसमें पूर्वी हिस्से के प्रमुख शहरों के चित्रात्मक वृत्तांत दर्ज हैं।
पुस्तक बताती है कि अमेरिका में सभी प्रकार के पर्यटकों का मन बहलाने के लिए पर्याप्त सामग्री है। इसी कारण अमेरिका घूमने सारे विश्व के घुमक्कड़ी-प्रेमी आना चाहते हैं। यहाँ के स्मारक अपने भूत को बाँचते हैं, वर्तमान को सूचित करते हैं व भविष्य को इंगित करते हैं। यहाँ आमोद-प्रमोद का प्रबंध है, संताप से निकल आगे बढ़ने का संदेश भी है और वेदना के जाल को चीरते हुए नए उत्साह-ऊर्जा-ऊष्मा से नई किरण का स्वागत भी है।
संयुक्त अरब अमीरात एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक वह कार्य होता हुआ दिख जाता है जो युगांतर से असंभव समझा जाता रहा है। यहाँ की ऊष्ण जलवायु में जैसे वनस्पति उत्तरजीविता सीख लेती है, व
संयुक्त अरब अमीरात एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक वह कार्य होता हुआ दिख जाता है जो युगांतर से असंभव समझा जाता रहा है। यहाँ की ऊष्ण जलवायु में जैसे वनस्पति उत्तरजीविता सीख लेती है, वैसे ही मानव भी अनुरूपण विकसित कर लेते हैं। राष्ट्रीय वृक्ष ‘ग़ाफ़’ अपनी जड़ों से धरती को बेधकर पानी खींच लेता है और अपने नुकीले काँटों द्वारा वायु की आर्द्रता से पानी सोख लेता है वैसे ही यहाँ का साहित्य समाज शुष्कता के भीतर भी रसास्वादन कर लेता है और वह अर्क छलक-छलककर अब विश्व तक अपनी छींटे पहुँचा रहा है। यू.ए.ई. के रचनाकार राष्ट्रीय पक्षी बाज़ के समान ही अपने उद्देश्य पर पैनी दृष्टि रखते हुए रचनाकर्म में प्रवृत्त हो रहे हैं। ‘दुबई’ नाम से ख्यातिप्राप्त यह देश यू.ए.ई. अपनी आर्थिक समृद्धता के साथ ही बौद्धिक समृद्धता के रूप में अपनी पहचान बनाने को अग्रसर है।
यू.ए.ई. के प्रवासी रचनाकारों को समर्पित इस पुस्तक को पाठकों की रुचि और सुविधा के लिए 5 अध्यायों में विभक्त कर रचा गया है। पहले अध्याय ‘काव्य खंड’ में कविता, दोहे, हाइकु, गज़ल तथा नज्म पढ़कर गुनगुनाइए। ‘कथात्मक गद्य’ दूसरे अध्याय में कहानी, लघुकथा आदि से काल्पनिक जगत की सैर कर आइए। तीसरे खंड ‘कथेतर गद्य’ में संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आलेख, पुस्तक समीक्षा, साक्षात्कार, रिपोर्ताज आदि द्वारा देश-दुनिया का ज्ञान पाइए। चौथा खंड ‘चित्र कानन’ की दृश्य-दावत में फ़ोटोग्राफ़ी, चित्रकारी, पेंसिल वर्क, चित्र-प्रदर्शनी के दर्शन कर यू.ए.ई. की कला-समृद्धि का स्वाद चखिए। पाँचवें व अंतिम खंड में यू.ए.ई. के तमाम रचनाकारों से मिल लीजिए। इस पुस्तक के माध्यम से आप यू.ए.ई. के प्रवासी भारतीय संचयकारों के मन-भाव तक पैठ बना सकेंगे।
संयुक्त अरब अमीरात एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक वह कार्य होता हुआ दिख जाता है जो युगांतर से असंभव समझा जाता रहा है। यहाँ की ऊष्ण जलवायु में जैसे वनस्पति उत्तरजीविता सीख लेती है, व
संयुक्त अरब अमीरात एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक वह कार्य होता हुआ दिख जाता है जो युगांतर से असंभव समझा जाता रहा है। यहाँ की ऊष्ण जलवायु में जैसे वनस्पति उत्तरजीविता सीख लेती है, वैसे ही मानव भी अनुरूपण विकसित कर लेते हैं। राष्ट्रीय वृक्ष ‘ग़ाफ़’ अपनी जड़ों से धरती को बेधकर पानी खींच लेता है और अपने नुकीले काँटों द्वारा वायु की आर्द्रता से पानी सोख लेता है वैसे ही यहाँ का साहित्य समाज शुष्कता के भीतर भी रसास्वादन कर लेता है और वह अर्क छलक-छलककर अब विश्व तक अपनी छींटे पहुँचा रहा है। यू.ए.ई. के रचनाकार राष्ट्रीय पक्षी बाज़ के समान ही अपने उद्देश्य पर पैनी दृष्टि रखते हुए रचनाकर्म में प्रवृत्त हो रहे हैं। ‘दुबई’ नाम से ख्यातिप्राप्त यह देश यू.ए.ई. अपनी आर्थिक समृद्धता के साथ ही बौद्धिक समृद्धता के रूप में अपनी पहचान बनाने को अग्रसर है।
यू.ए.ई. के प्रवासी रचनाकारों को समर्पित इस पुस्तक को पाठकों की रुचि और सुविधा के लिए 5 अध्यायों में विभक्त कर रचा गया है। पहले अध्याय ‘काव्य खंड’ में कविता, दोहे, हाइकु, गज़ल तथा नज्म पढ़कर गुनगुनाइए। ‘कथात्मक गद्य’ दूसरे अध्याय में कहानी, लघुकथा आदि से काल्पनिक जगत की सैर कर आइए। तीसरे खंड ‘कथेतर गद्य’ में संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आलेख, पुस्तक समीक्षा, साक्षात्कार, रिपोर्ताज आदि द्वारा देश-दुनिया का ज्ञान पाइए। चौथा खंड ‘चित्र कानन’ की दृश्य-दावत में फ़ोटोग्राफ़ी, चित्रकारी, पेंसिल वर्क, चित्र-प्रदर्शनी के दर्शन कर यू.ए.ई. की कला-समृद्धि का स्वाद चखिए। पाँचवें व अंतिम खंड में यू.ए.ई. के तमाम रचनाकारों से मिल लीजिए। इस पुस्तक के माध्यम से आप यू.ए.ई. के प्रवासी भारतीय संचयकारों के मन-भाव तक पैठ बना सकेंगे।
‘फ़िबोनाची वितान’, पुस्तक की कहानियों में अनंत फैलाव की संभावना उपस्थित है। न केवल ‘फ़िबोनाची प्रेम’ में अनंत फैलाव प्रेक्षेपित है, ‘गजदंत’ स्त्रीत्व के स्वामित्व, स्व
‘फ़िबोनाची वितान’, पुस्तक की कहानियों में अनंत फैलाव की संभावना उपस्थित है। न केवल ‘फ़िबोनाची प्रेम’ में अनंत फैलाव प्रेक्षेपित है, ‘गजदंत’ स्त्रीत्व के स्वामित्व, स्वतंत्रता तथा स्वावलम्ब की परिधि के फैलाव की कहानी है तो प्रत्यावर्तन मानवता की प्रगति की किरणों की। ‘श्याम वर्ण के दर्पण’ जीवट से जीवन को एकत्र कर पुनर्स्थापित करती है तो ‘आधी माँ अधूरा कर्ज़’ तार-तार जोड़, भूतकाल को भविष्य में देख एक नई कहानी बुनती है। ‘प्रवासी लेखिका का फेंगशुई’ परिस्थितियों का संकुचन और विस्तीर्णता है तो ‘धूमिल मलिन’ बिखराव को संयत कर एकाग्रता की कथा है। ‘नुक्ताचीनी’ मन के तममय कोने में दबे स्नेह को प्रकाशमान करने की व्यथा है तो ‘लॉकेट’ निजमन को वंचित में आरोपित कर वृहद धरा पर संचरित करने की कथा है। कुछ ऐसे ही रेशे से बुनी ‘तैरते हुए पुल’ अपनी आस्थाओं, पूर्वधारणाओं और पक्षपातों को परित्याग, भिन्न आयाम को अपनाकर मानवता के संवर्धन को दर्शाती है और ‘दुर्घटना की दुआ’ डर से डरे को निडर बनाकर संवेदनाओं व सहानुभूतियों के परिमाण को प्रवर्धित करती है।
यू.ए.ई. की भूमि पर बुनी गई ग्यारह कहानियाँ प्रवासी मन की गुत्थियों को खोलते हुए, उलझनों को दूर कर, एक सुलझी हुई लच्छी बनकर सामने आती हैं। एक महीन बिंदु से आरंभ कर अपरिमेय रवि-किरण बनने की सम्पूर्ण संभावना इन कहानियों में व्याप्त है। स्त्री-संघर्ष के सूक्ष्म पात्र में रची ये कथाएँ, दृढ़ निश्चय का आधान कर, उपायों का संधान कर व अस्तित्व का अभिज्ञान कर अपने व्यक्तित्व को विस्तीर्ण कर सागर बन जाती हैं। एक ऐसा सिंधु जो उसमें डाले गए अवांछित को तट पर पटक आता है। स्त्री प्रधान ये कथाएँ नारी को नारी से मिलवाती हैं तो पुरुष को नारी मन में झाँकने का आमंत्रण देती हैं।
अश्रुत श्रव्य' कथेतर गद्य की विविध विधाओं में लिखी गई 31 रचनाओं का संकलन है। इनमें शोध पत्र, शोधपरक आलेख, तथ्यात्मक लेख, भ्रमण वृत्तांत, साक्षात्कार, पत्र, संवाद, भेंटवार्ता, साक
अश्रुत श्रव्य' कथेतर गद्य की विविध विधाओं में लिखी गई 31 रचनाओं का संकलन है। इनमें शोध पत्र, शोधपरक आलेख, तथ्यात्मक लेख, भ्रमण वृत्तांत, साक्षात्कार, पत्र, संवाद, भेंटवार्ता, साक्षात्कार, मीमांसा, पुस्तक समीक्षा, पुस्तक भूमिका, रिपोर्ताज, प्रस्तावना, सम्पादकीय, टिप्पणी, अनुवाद, भाषण व परिचर्चा आदि को स्थान मिला है। ये विधाएँ कल्पना, गल्प, और स्वप्न की बजाय यथार्थ के बीज से तथ्यों की ठोस भूमि पर विवेक की उर्वरा से भाषा की सम्पन्नता के पुष्पों से पल्लवित होती हैं। शोध पत्रों के अतिरिक्त भी सभी विधाएँ गहन अध्ययन, सूक्ष्म अन्वेषण और सम्पूर्ण गवेष्णा की माँग करती हैं। इन विधाओं में लेखन एक साहसिक और दुष्कर कार्य है। कथेतर विधाओं की कमी को पूरा करती हुई यह पुस्तक आपको दुबई, यू.ए.ई. (संयुक्त अरब अमीरात) के बहुत से तथ्यों से परिचित करा जाएगी। पुस्तक स्मृतिशेष चाचाश्री डॉ. देवेंद्र कुमार गुप्ता जी को समर्पित है। यूक्रेन के परमज्ञानी हिंदी पुरोधा आदरणीय डॉ. यूरी बोत्विन्किन जी ने पुस्तक की भूमिका लिखी है तो चीन में हिंदी प्राध्यापक व विद्वान डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी जी ने प्रस्तावना लिखी है। कथेतर रचनाओं का संकलन होने के कारण विषयवस्तु के चयन में बहुत सावधानी बरती गई है। ‘अश्रुत श्रव्य’ में संकलित करने के लिए ध्यानपूर्वक कथेतर गद्य की अनेक विधाओं की रचनाओं का चयन किया गया है। गद्याध्येताओं के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
यू.ए.ई. एक छोटा-सा देश है। भूमंडल के नक्शे पर सहज ही दिख जाए, ऐसा वृहदाकार नहीं है। खोजने से मिल जाए, ऐसा अवश्य है। मध्य पूर्व के देशों के पूर्वग्रह से अलग हटकर इसने अपनी पहचान बनाने
यू.ए.ई. एक छोटा-सा देश है। भूमंडल के नक्शे पर सहज ही दिख जाए, ऐसा वृहदाकार नहीं है। खोजने से मिल जाए, ऐसा अवश्य है। मध्य पूर्व के देशों के पूर्वग्रह से अलग हटकर इसने अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत ज़ोर लगाया है। अपनी भौतिक विशेषताओं से इसने हाल ही में सारी दुनिया में अपना नाम बनाया है। कुछ ऐसी ही स्थिति यहाँ के हिंदी-प्रेमियों की भी है। यहाँ बसे प्रवासियों ने पिछले कुछ वर्षों में ही अपनी पहचान दुनिया के लेखकों व कवियों के बीच बनाई है। पुस्तक का उद्देश्य ही है यहाँ के प्रवासी भारतीयों के मन को दुनिया के सामने खोलना, यहाँ की सांस्कृतिक-सामाजिक विशिष्टताओं को दूर-दूर तक पहुँचाना और इसके माध्यम से हिंदी प्रवासी भारतीय संसार से जुड़ना।
यू.ए.ई. के रचनाकारों को समर्पित यह पुस्तक उनकी मँझी हुई कलम की स्याही से रची गई है। इस पुस्तक में पाठकों की रुच और सुविधा के लिए इसे 6 अध्यायों में विभाजित किया गया है। पहले तीन अध्याय साहित्यिक रुचि रखने वाले पाठकों के लिए हैं और शेष अध्याय कलात्मक रुचि मनीषियों के लिए हैं। पहले अध्याय ‘काव्य खंड’ में अनेक प्रकार की पद्य रचनाओं को संकलित किया गया है। कविता, गज़ल, गीत, हाइकु तथा चित्राधारित काव्य कृतियाँ इसी अध्याय का अंग हैं। इस खंड में यू.ए.ई. के विभिन्न स्कूलों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की रचनाओं को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। गद्य खंड में कथात्मक तथा कथेतर खंड के आधार पर अध्याय बनाए गए हैं। चित्रात्मक अभिव्यक्ति भी इस पुस्तक का अभिन्न अंग है।
‘षड्गंधा’ संग्रह में समेटी गई कविताएँ भिन्न-भिन्न अवसरों पर, भाँति-भाँति की मन:स्थिति में और नाना प्रकार की भावनाओं की स्याही को कलम में भरकर पन्नों पर उतारी गई हैं। कभी यह कल
‘षड्गंधा’ संग्रह में समेटी गई कविताएँ भिन्न-भिन्न अवसरों पर, भाँति-भाँति की मन:स्थिति में और नाना प्रकार की भावनाओं की स्याही को कलम में भरकर पन्नों पर उतारी गई हैं। कभी यह कलम वेदना की ऊष्मा से संचालित हुई है तो कभी हर्षातिरेक की ऊर्जा से संचारित। विषयों की विविधता को ध्यान में लाते हुए इनका वर्गीकरण मैंने छ: खंडों में किया है।
प्रथम सर्ग ‘मौलश्री की गंध’ भक्ति रस की कविताओं की श्रद्धा-पल्लवित बगिया है तो द्वितीय सर्ग ‘सर्वज्जय की गंध’ स्वदेश और प्रवासी मन की सुरभि से प्लावित है। तृतीय सर्ग ‘अमलतास की गंध’ भारतीय संस्कृति, परंपराओं और त्योहारों से आच्छादित है तो चतुर्थ सर्ग ‘कचनार की गंध’ नारी मन के भाव-स्वभाव का सौरभ बिखेरे हुए है। पंचम सर्ग ‘रत्नज्योति की गंध’ स्वाभिमान और स्मृतियों से सुवासित है तो षष्ठम सर्ग ‘बनफशा की गंध’ प्रकृति की सुरम्यता की खुशबू से सराबोर है। अंत में षड़्गंध वाटिका खंड में ॐ आकृति विधा में रचित छ: कविताओं का समावेश किया गया है जो पूर्व के छ: सर्गों में समाहित भिन्न-भिन्न भावों को दर्शाती हैं।
'झरोखे' वस्तुओं को देखने वाले लैंस की तरह ही हैं। जैसा लैंस होगा, वैसा ही दिखाई देगा। लैंस मैला है, तड़का है या अपारदर्शी है, वस्तुएँ वैसी ही दिखेंगी। दुनिया को देखने के लैंंस झरोखे
'झरोखे' वस्तुओं को देखने वाले लैंस की तरह ही हैं। जैसा लैंस होगा, वैसा ही दिखाई देगा। लैंस मैला है, तड़का है या अपारदर्शी है, वस्तुएँ वैसी ही दिखेंगी। दुनिया को देखने के लैंंस झरोखे कहलाते हैं। जब हम झरोखे बंद कर लेते हैं तो बाहर की दुनिया हमारी आँखों से ओझल हो जाती है। बाहरी दुनिया देखने के लिए कभी अपने अन्य झरोखों को बंद कर केवल यात्रा के झरोखे खोलने की आवश्यकता होती है। यात्राएँ आपको रोजमर्रा की भागमभाग की दुनिया से दूर ले जाती हैं। घर की, दफ़्तर की समस्याओं को भूल एक अन्य संसार में प्रवेश का साधन होती हैं यात्राएँ।
एक यात्रा कर लौट आने क बाद ही अहसास होता है कि एक नया जन्म मिला है और हम अपनी घर-बाह्र की परेशानियों को सुलझाने पूरे मनोयोग से लग जाते हैं। यात्रा करना भी कोई आसान काम नहीं है। उसकी पूर्व योजना बनानी होती है, समस्त जानकारी एकत्र करनी होती है। टिकट, वीसा, होटल बुक करना; सभी करना होता है। फिर आता है काम उस देश की मूल जनाकारी का और दर्शनीय स्थलों की सूची का। यह पुस्तक 'झरोखे' आपके लिए ऐसी कई समस्याओं का समाधान लेकर प्रस्तुत हुई है। दुनिया के पाँच देशों की बहुत सारी घूमने में सहायक जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। इस पुस्तक के झरोखों से आप देख पाएँगे दुनिया के कई देशों को, जैसे- यूक्रेन, मोंटेनेग्रो. मलेशिया, किर्गिस्तान, सल्तनत ऑफ़ ओमान।
आशा है यह पुस्तक आपकी यात्राओं को नियोजित करने में सहायक सिद्ध होगी और इसे घुमक्कड़ प्रजाति की पाठकोंंका भरपूर स्नेह प्राप्त होगा।
डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ गोयल का यह उपन्यास ‘ऋतंभरा के 100 द्वीप’ विस्तार और पेचीदगी के साथ विशिष्ट मानव जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से संबंधित वास्तविक एवं काल्पनि
डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ गोयल का यह उपन्यास ‘ऋतंभरा के 100 द्वीप’ विस्तार और पेचीदगी के साथ विशिष्ट मानव जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से संबंधित वास्तविक एवं काल्पनिक घटनाओं द्वारा मानव जीवन के रहस्य का रसात्मक रूप से उद्घाटन करता है। प्रकारांतर से यह उपन्यास लगभग सौ वर्ष के काल्पनिक इतिहास को समेटे हुए है। सत्ता के लिए रक्तपात के साथ-साथ, मानव-मानव के बीच प्रेम, भाईचारे, मानव-कल्याण की भी समष्टि की गयी है। प्रारंभ में लगेगा कि यह पौराणिक काल की कथा है तो कभी लगेगा कि ये पूरा का पूरा जासूसी उपन्यास है। मगर अंत तक पहुँचते-पहुँचते उसे भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना का भान होने लगेगा। इसमें अतीत से वर्तमान का टकराव है, तो समन्वय भी है और भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठापना भी है। नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के अंतर्द्वंद्व है और समझौतावादी नीति भी और अंततः अपने-अपने लक्ष्यों तक पहुँचने की सफलता भी। उपन्यास में स्थान-स्थान पर प्रयुक्त नीतिवाक्यों, मुहावरों और लोकोक्तियों ने पठनीयता में चार चाँद लगा दिए हैं, जो लेखिका के अनवरत अध्ययन एवं अनुशीलन का सुपरिणाम हैं। यह उपन्यास पाठकों के मर्म को छूने में सफल है। डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ का कथन साहित्य मानवीय संबंधों की नई जटिलताओं के इर्द-गिर्द घूमता है। यह उपन्यास भी उसी प्रकार आदमी से आदमी के रिश्ते की कुछ असंभव-सी परिस्थिति को सामने लाता है। उत्कर्ष बिंदु अंत में आता है। यह उत्कर्ष बिंदु जितना जटिल लगता है, उतना ही जीने का अदम्य साहस व उत्साह भी रेखांकित करने वाला है। यह उपन्यास प्रवासी हिंदी साहित्य के लिए बहुमूल्य उपहार सिद्ध होगा। निश्चय ही पाठक मेरी तरह उपन्यास को पढ़ लेने पर फिर से नाता तोड़ लेने में कदापि समर्थ न होंगे।
डॉ. आरती लोकेश लगभग दस वर्षों से साहित्य साधना में निरन्तर समर्पित हैं। दुबई यू.ए.ई की निवासी होने के कारण भारतीय संस्कृति और संस्कारों के साथ दुबई यू.ए.ई की संस्कृति और संस्कारो
डॉ. आरती लोकेश लगभग दस वर्षों से साहित्य साधना में निरन्तर समर्पित हैं। दुबई यू.ए.ई की निवासी होने के कारण भारतीय संस्कृति और संस्कारों के साथ दुबई यू.ए.ई की संस्कृति और संस्कारों की झलक इनके साहित्य में स्पष्ट रूप से छलकती है। अपने लेखन कौशल के कारण वे हिन्दी भाषियों के साथ अहिन्दी भाषियों की सर्वाधिक प्रिय रचनाकार हैं। उनके समग्र साहित्य पर दो भारतीय और एक विदेशी विश्वविद्यालय में शोध कर्म किया जा रहा है। ‘डॉ. आरती लोकेश की साहित्य सुरभि’ पुस्तक के निर्माण का उद्देश्य हिंदी साहित्य अध्ययन करने वालों को सहायता प्रदान करना है। अपने नाम के अनुरूप यह पुस्तक अपनी सार्थकता को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त करती है। जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों रूपी राग को इस सुरभि में उकेरा गया हैं। इसे असीम हिन्दी साहित्य का हिस्सा बनाने का प्रयास अनवरत रहा है। आज का पाठक उनकी समग्र कृतियों को पढ़ने का अरमान रखता है। ‘साहित्य सुरभि’ को प्रकाशन योजना पाठक के उसी अरमान को पूरा करने की ओर एक कदम है।
इस पुस्तक में उनके जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को भी रेखांकित किया गया है। उनके द्वारा रचित नौ पुस्तकों तथा तीन संपादिक पुस्तकों पर समीक्षाएँ व टिप्पणियों को इस पुस्तक में शामिल किया गया है। यह पुस्तक उनके साहित्य को अध्ययन करने वालों को उनके रचना-उद्देश्यों की सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करेगी। अध्ययन की सुविधा से एक पुस्तक पर लिखी गई सभी समीक्षाओं को एक साथ रखा गया है। साथ ही कुछ साक्षात्कार भी सम्मिलित किए गए हैं जो उनके शोधार्थियों को उन्हें बेहतर जानने में मदद करेंगे। देश तथा विदेशी प्रतिष्ठित साहित्यकारों के शुभाशीष के साथ यह पुस्तक बहुत उपयोगी बन पड़ी है।
दुबई की पृष्ठभूमि पर रचा उपन्यास ‘निर्जल सरसिज’ माँ बेटी के संबंधों की गंभीर पड़ताल करता है। इसमें तीन माँ-बेटी की कहानी आगे-पीछे और कभी साथ-साथ चलती है। श्यामला-नलिनी, नलिनी-अ
दुबई की पृष्ठभूमि पर रचा उपन्यास ‘निर्जल सरसिज’ माँ बेटी के संबंधों की गंभीर पड़ताल करता है। इसमें तीन माँ-बेटी की कहानी आगे-पीछे और कभी साथ-साथ चलती है। श्यामला-नलिनी, नलिनी-अनुष्का तथा दीत्यांगना-ऋतम्भरा माँ बेटियों की सर्वथा भिन्न कहानियाँ अपनी-अपनी अलग त्रिज्या और व्यास से गढ़ी, अपनी परिस्थितियों की परिधि में घूमती हुई एक बिंदु पर आ टकराती हैं। मुख्य पात्र नलिनी एक ऐसी बेटी है जिसे सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं मिला। जिसने बहुत कुछ खोकर बहुत थोड़ा पाया और उसमें संतोष किया। अपना कोई घर नहीं और इस घर से उस घर घूमती नलिनी पर अपनी सोच अपने विचार पनपने से पहले ही मजबूरियाँ उस पर हावी हो गईं। वह एक ओर जाती तो उसे दूसरी राह दिखती और दूसरी ओर जाती तो पहली राह बताई जाती। इतना कुछ हो जाने पर भी उसके चेहरे पर न शिकन ही उभरी, न स्वर में आह ही। उसके धैर्य, विवेक, समर्पण और सूझ-बूझ ने उसके जीवन को सँवारने में मदद की। उसके अनगढ़ जीवन को संबल मिला उसकी अपनी बेटी से और वह अपनी माँ को समझने में सफल रही। इतना ही नहीं अपनी परम मित्र और आदर्श के विचार सिरे से बदलने में उसने बड़ी भूमिका निभाई।
गद्य-साहित्य पर शोधरत विद्यार्थी जानते हैं कि मात्र उपन्यास, कहानी, लघुकथा और नाटक ही गद्य नहीं हैं। गद्य का क्षितिज कथा-साहित्य के आकाश और कथेतर साहित्य की धरा के मिलन से बनता ह
गद्य-साहित्य पर शोधरत विद्यार्थी जानते हैं कि मात्र उपन्यास, कहानी, लघुकथा और नाटक ही गद्य नहीं हैं। गद्य का क्षितिज कथा-साहित्य के आकाश और कथेतर साहित्य की धरा के मिलन से बनता है। आकाश सरलता से दिखाई देता है और धरा के नग अनचीह्ने रह जाते हैं। कथा से इतर वे कथनीय कहन के उद्गार समय की परतों में अकथनीय बन ‘कथ्य-अकथ्य’ पुस्तक में अवतरित हुए हैं।
‘कथ्य अकथ्य’ में ऐसे 30 से अधिक आलेख संग्रहीत हैं जो गद्य की अलग-अलग कथेतर विधाओं के अंतर्गत आते हैं। । पुस्तक स्मृतिशेष लेखिका डॉ. आरती ‘लोकेश’ की प्रिय सखी डॉ. उदीशा शर्मा को समर्पित है। डॉ. सुमन राठी, हिंदी प्रोफ़ेसर, बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है।
कथेतर रचनाओं का संकलन होने के कारण विषयवस्तु के चयन में बहुत सावधानी बरती गई है। ‘कथ्य-अकथ्य’ में संकलित करने के लिए ध्यानपूर्वक कथेतर गद्य की अनेक विधाओं की एक-एक रचना का चयन किया गया है। इसमें रेखाचित्र, संस्मरण, शोध-आलेख, शोध-निबंध, व्यंग्य, हास्य, रिपोर्ताज, समीक्षा, मीमांसा, डायरी, पत्र, साक्षात्कार, सम्पादकीय, समाचार, संवाद आदि सबकी रचनाएँ लेने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त पुस्तक भूमिका, विवेचना, टिप्पणी, अनुच्छेद, अशुभाषण आदि को भी स्थान दिया है। यात्रा-वृत्तांत की अलग पुस्तक ‘पाँव ज़मीं पर’ निर्माणाधीन है। अनावश्यक दोहराव से बचना इस पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य है। आशा है गद्यध्येताओं के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
साहित्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की जीती-जागती मिसाल डॉ. अशोक कुमार ‘मंगलेश’ अपनी साहित्यसेवा को विद्यार्जन व ज्ञानार्जन का मार्ग बताते हैं। सत्य ही है, उनका व्यक्तित्व व क
साहित्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की जीती-जागती मिसाल डॉ. अशोक कुमार ‘मंगलेश’ अपनी साहित्यसेवा को विद्यार्जन व ज्ञानार्जन का मार्ग बताते हैं। सत्य ही है, उनका व्यक्तित्व व कृतित्व अनुकरणीय है। उनका साहित्य किसी परिचय की अपेक्षा नहीं रखता। वह स्वयंसिद्ध है, मील का पत्थर है, एक निकष की मानिंद पारखी है। काल्पनिक रचनाओं से इतर इसमें अटल, अखंड, नश्वर यथार्थ की विचारावली पैठी प्रतीत होती है।
डॉ. ‘मंगलेश’ की पुस्तकों की उत्कृष्टता स्वयं उद्घोषित करती है कि उनकी लेखनी की परछाईं तक पर कलम चलाना सरल नहीं है। फिर भी डॉ. ‘मंगलेश’ की मनभर की पुस्तकों पर समीक्षकों ने मन भर-भर कर कलम घिसी है। मैंने स्वयं भी दर्शन से लबालब उनकी लघु कविताओं पर, उनसे उद्धृत वेदना-नीतियों पर पेंसिल फिराई है। उनके महति लेखन की महत्ता उनपर चिंतनपरक समीक्षाओं के संकलन से पोषित होती है।
इस पुस्तक में डॉक्टर साहब के काव्य तथा साहित्य पर की गई समीक्षाओं को ही सम्मिलित किया है। अध्ययन की दृष्टि से पुस्तक को दो खंडों में विभाजित भी किया है। खंड-1 में काव्य पुस्तकों की समीक्षाएँ रखी गई हैं तो खंड-2 में साहित्यिक समीक्षाएँ सम्मिलित हैं। एक-एक समीक्षा हमें उनकी पुस्तकों के और, और करीब ले जाती है। पाठक शनै:शनै: इन पुस्तकों से एक चिरपरिचित जुड़ाव अनुभव करता है। पुस्तक में सर्वप्रथम साहित्यकार डॉ. ‘मंगलेश’ जी का संक्षिप्त जीवनवृत्त तथा रचनाधर्म समाहित है जिसमें उनकी समस्त पुस्तकाकार रचनाओं का ब्योरा है। स्नेहिल आशा लता खत्री जी द्वारा डॉ. ‘मंगलेश’ पर रची गई दो कविताएँ भी सम्मिलित की गई हैं। डॉ. ‘मंगलेश’ जी के साहित्य की जानकारी उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों के आवरण से भी दी गई है।
डॉ. आरती ‘लोकेश’ का सन 2015 में प्रकाशित पहले उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ के लंबे अंतराल बाद प्रकृत उपन्यास रचना है। उपन्यास में स्त्री केंद्रित विभिन्न विषयों के सूक्ष्म चित्र
डॉ. आरती ‘लोकेश’ का सन 2015 में प्रकाशित पहले उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ के लंबे अंतराल बाद प्रकृत उपन्यास रचना है। उपन्यास में स्त्री केंद्रित विभिन्न विषयों के सूक्ष्म चित्रण के साथ-साथ सामाजिक जटिलताएँ, शिक्षा, वर्चस्व, व्यवस्था, अहंवादिता, टूटते संबंध आदि अनेक समस्याएँ उपस्थित हुई हैं। स्त्री के सैद्धांतिक आग्रहों से दूर स्त्री जगत के अनेक व्यावहारिक पक्षों को रेखांकित करती उपन्यास की नायिका चारु के अतिरिक्त विपुल, शुभदा, प्रमोद, चाची सुशीला, मंजु, दादी, गोविंद, अरविंद तथा मौली आदि अन्य पात्र कथा को गति प्रदान करते हुए प्रकट होते हैं। कथा के प्रवाह, घटनाओं की संयोजकता तथा पठन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए लेखिका ने उपन्यास को 9 उपशीर्षकों में विभक्त किया है- जो इसकी प्रभावोत्पादकता को बढ़ाते हैं।
उपन्यास का केंद्रीय चरित्र चारु है, पूरी कथा उसके आसपास, उक्त अलग-अलग खंडों में घटित होते हुए आगे बढ़ती है जोकि अलग-अलग होते हुए भी सगुम्फित है। चारु के संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि जब दर्द और ग्लानि हद से बढ़ जाता है तो वही दवा बन जाता है। प्रसंगानुरूप भाषिक प्रयोग और संवादों की रचना में डॉ ‘लोकेश’ वर्तमान रचनाकारों की अग्र पंक्ति में खड़ी दिखाई देती हैं। नए-नए शब्दों का घड़ना, चयन करना और परिवेश तथा पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग उपन्यास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण है जो पाठक जिज्ञासा और पठनीयता को बढ़ाता है। वस्तुतः उपन्यास की रचना में भाषा रूपी औजारों का अकूत भंडार देखने को मिलता है, जो कला- सौष्ठव का मजबूत पक्ष है| प्रकृत उपन्यास एक ऐसी युवा स्त्री की गाथा है जिसके साथ कई परिचितों के साथ न चल पाने की त्रासदी जुड़ी हुई है, जो साथ लगातार रहते हुए अकेलापन महसूस करती है।
स्त्री का हृदय मोम के जैसा होता है। तात्पर्य कोमलता से नहीं, मोम की इस विशेषता से है कि ज़रा सी ऊष्मा से पिघल जाता है। स्वयं जलकर दूसरों के आँगन में प्रकाश देता है, और अँधेरा अपने तल
स्त्री का हृदय मोम के जैसा होता है। तात्पर्य कोमलता से नहीं, मोम की इस विशेषता से है कि ज़रा सी ऊष्मा से पिघल जाता है। स्वयं जलकर दूसरों के आँगन में प्रकाश देता है, और अँधेरा अपने तले में एकत्र कर लेता है। जब उजाला फैलाने की ताकत नहीं रहती तो अँधेरे पर बिखरकर, जमकर उसे दूसरों तक पहुँचने से रोक लेता है।
कहा जाता है कि हर पुरुष की सफलता में एक स्त्री का हाथ निश्चित होता है। प्रश्न उठता है कि सफलता पर क्या पुरुष का एकछत्र साम्राज्य है। बदलते युग की बदलती नारी जब पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, बल्कि तेज़ चलकर आगे बढ़ रही है, तो सफलता पर उसका भी समान अधिकार सिद्ध हो चुका है। परंतु नारी की सफलता में भी किसी पुरुष की बराबर की भूमिका रहती है। फिर वह पुरुष चाहे पिता हो, भाई हो, पुत्र हो, पति हो या प्रेमी ही क्यों न हो। ये सभी कभी अभिप्रेरक तो कभी प्रेरक की, कभी मार्गदर्शक की तो कभी समीक्षक की, कभी सहयोगी की तो कभी परामर्शदाता की भूमिका अदल-बदल कर निभाते रहते हैं।
ऐसी ही कुछ मिश्रित भावनाओं में रुकते-चलते जीवन के उतार-चढ़ाव का चित्रण मैंने अपने उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ में करने का प्रयास किया है। अध्ययन की सुविधा तथा घटनाक्रम की तारतम्यता के अनुसार मैंने उपन्यास को 10 खंडों में विभक्त किया है। प्रत्येक खंड के नाम जैसे- पहला ‘यादों के भँवर’, दूसरा ‘उजली भोर’, तीसरा ‘उड़ान और बसेरा’, चौथा ‘उघड़ा ज़ख्म गहरा’, पाँचवाँ ‘रिश्तों की डोर’, छठा ‘बंधन के महीन धागे’, सातवाँ ‘मन भागे रे भागे’, आठवाँ ‘उपाय और निदान से आगे’, नौवाँ ‘शहनाई का आलम सुनहरा’ तथा दसवाँ व आखिरी ‘रोशनी का पहरा’ कहीं न कहीं उपन्यास की मुख्य पात्र ‘ऊष्मी’ के जीवन की लड़ियों को कुछ शब्दों में झलकाने का प्रयत्न हैं।
यू.ए.ई. जैसे अरबीभाषी देश में स्कूली बच्चों की सम्मोहित कर देने वाली प्रतिभा का समन्वय है पुस्तक ‘होनहार बिरवान’। अंग्रेज़ी भाषा में सिद्धहस्त अल्पयुवा बालकों द्वारा ‘हिंद
यू.ए.ई. जैसे अरबीभाषी देश में स्कूली बच्चों की सम्मोहित कर देने वाली प्रतिभा का समन्वय है पुस्तक ‘होनहार बिरवान’। अंग्रेज़ी भाषा में सिद्धहस्त अल्पयुवा बालकों द्वारा ‘हिंदी’ विषय पर की गई अपूर्व रचनाएँ इस पुस्तक में समाहित हैं। यह पुस्तक इस तथ्य को सिद्ध करती है कि कविता की गुणवत्ता और उत्कृष्टता उम्र की परिपक्वता के आधीन नहीं है। अपने देश की मिट्टी से दूर पनप रहे ‘होनहार बिरवान’ के चीकने पात की चमक व समृद्धि को डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने इस पुस्तक में समेटा है। इन प्रवासी नौनिहालों की सुंदर भाषा, लययुक्त शब्दावली, उच्च विचार व भावों का वेगपूर्ण प्रवाह पाठक को चकित कर देगा। किसी सुगम भाषा-सी तरलता भी हिन्दी में है और दुरूह भाषा-सी दृढ़ता भी। इस विचार को पुष्ट करती, दस से सत्रह साल के पैंतालीस शिक्षार्थियों की मंत्रमुग्ध करने वाली कविताओं से परिपूर्ण पुस्तक ‘होनहार बिरवान’ हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के प्रति पाठक को आश्वस्त करेगी।
यू.ए.ई. जैसे अरबीभाषी देश में स्कूली बच्चों की सम्मोहित कर देने वाली प्रतिभा का समन्वय है पुस्तक ‘होनहार बिरवान’। अंग्रेज़ी भाषा में सिद्धहस्त अल्पयुवा बालकों द्वारा ‘हिंद
यू.ए.ई. जैसे अरबीभाषी देश में स्कूली बच्चों की सम्मोहित कर देने वाली प्रतिभा का समन्वय है पुस्तक ‘होनहार बिरवान’। अंग्रेज़ी भाषा में सिद्धहस्त अल्पयुवा बालकों द्वारा ‘हिंदी’ विषय पर की गई अपूर्व रचनाएँ इस पुस्तक में समाहित हैं। यह पुस्तक इस तथ्य को सिद्ध करती है कि कविता की गुणवत्ता और उत्कृष्टता उम्र की परिपक्वता के आधीन नहीं है। अपने देश की मिट्टी से दूर पनप रहे ‘होनहार बिरवान’ के चीकने पात की चमक व समृद्धि को डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने इस पुस्तक में समेटा है। इन प्रवासी नौनिहालों की सुंदर भाषा, लययुक्त शब्दावली, उच्च विचार व भावों का वेगपूर्ण प्रवाह पाठक को चकित कर देगा। किसी सुगम भाषा-सी तरलता भी हिन्दी में है और दुरूह भाषा-सी दृढ़ता भी। इस विचार को पुष्ट करती, दस से सत्रह साल के पैंतालीस शिक्षार्थियों की मंत्रमुग्ध करने वाली कविताओं से परिपूर्ण पुस्तक ‘होनहार बिरवान’ हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के प्रति पाठक को आश्वस्त करेगी।
कुहासे के तुहिन कथा संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ संकलित हैं। कथाकारा स्वयं उच्च शिक्षित एवं मध्यवर्गीय समाज से सम्बंधित हैं इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति सहित विदेशी सभ्या
कुहासे के तुहिन कथा संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ संकलित हैं। कथाकारा स्वयं उच्च शिक्षित एवं मध्यवर्गीय समाज से सम्बंधित हैं इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति सहित विदेशी सभ्याचार, विशेषकर अरब संस्कृति का सूक्ष्म व विस्तृत ज्ञान है। इस कथा संग्रह में बलात्कार उत्पीड़न, बचपन के प्रतिकार, संथारा परंपरा, नारी ममत्व की पराकाष्ठा, महिला सशक्तिकरण, कोरोना काल की भयावह परिस्थितियों तथा आत्मीय संबंधों की तिड़कन, लेखक-संपादक संबंध, वृद्धों का तिरस्कृत जीवन एवं खुद्दारी की भावना, बड़े होने के नाते उत्तरदायित्व एवं बलिदान की भावना, भारतीय संस्कृति की पहचान, पत्थरों से जुड़ी मानवीय संवेदनाएं, प्रवास अनुभवों आदि को आधार बनाकर इन कथाओं का ताना-बाना बुना है। कथाकार डॉ. आरती लोकेश की इन विषयों पर गहरी पकड़ है। वह सूक्ष्म भावनाओं तथा पल प्रतिपल करवट बदलते अहसासों, अर्जित ज्ञान व अनुभवों को सलीके से संजोने में सिद्धहस्त हैं। निस्संदेह ये कहानियाँ अधिकतर उच्च शिक्षित एम मध्यवर्गीय संस्कृति में पले बढ़े परिवारों के पात्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं लेकिन इन पात्रों की मानसिकता पूर्णतया भारतीय संस्कृति में रची बसी है। अपनी और पराई धरती पर भी वह अपनी मूल संस्कृति से कटते नहीं, जड़ों से टूटते दिखाई नहीं देते। वे विदेश की धरती पर भी ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ की छवि स्थापित करने से गुरेज नहीं करते। साथ ही साथ कथाकारा भारतीय समाज में गहरे तक प्रवेश कर चुकी बलात्कार व आडंबर जैसी बुराइयों एवम् कुरीतियों पर भी शाब्दिक प्रहार तथा जिम्मेदार लोगों पर तीक्ष्ण कटाक्ष करने से नहीं चूकतीं।
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साह
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साहित्यकार हैं उनके साहित्य का प्रयोजन कालातीत है। उनके लिए साहित्य उनके शब्द और कर्म दोनों में रचा बसा है। साहित्य की आधारभूमि पर स्थित रहकर वे राजनीति, समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, आर्थिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। उनके कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए से देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण उनके साहित्य पर शोध का कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मौलिक शोध कार्य के हित मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया। अपने शोध कार्य को अन्य शोधार्थियों के अध्ययन व सुविधा के लिए इस शोध ग्रंथ को मैं शिक्षा जगत को सौंपती हूँ।
‘साँच की आँच’ सत्य से जूझती ग्यारह कहानियों का अद्भुत संगम है जिनमें प्रेम, संघर्ष, लगन, श्रद्धा, आत्मबल की पावक में परिशुद्धता ग्रहण कर संशय, भेदभाव, लोभ, स्वार्थ को तिरोहित क
‘साँच की आँच’ सत्य से जूझती ग्यारह कहानियों का अद्भुत संगम है जिनमें प्रेम, संघर्ष, लगन, श्रद्धा, आत्मबल की पावक में परिशुद्धता ग्रहण कर संशय, भेदभाव, लोभ, स्वार्थ को तिरोहित करती हुई त्याग, समर्पण, समानुभूति व विवेकपूर्ण विचारों-भावनाओं का उदय प्रतिध्वनित होता है। संग्रहित कहानियों में से अनेक किस्से प्रवासी व्यथा व वेदना-संवेदना को मुखरित करते हैं। नवागत ग्रामबाला की दुबई के विद्यालय में अस्तित्व की लड़ाई हो या दुबई में पोषित बालकों का भारत के परिवेश से सामंजस्य स्थापना के लिए जूझना, पिता की मृत्यु पर पहुँच न पाना, एक प्रवासी मन की अकुलाहट के प्रत्यक्ष दर्शन का आमंत्रण है। प्रवासी भूमि की मिट्टी और जन्मभूमि की मिट्टी के गुण-दोषों का आकलन भी कलम से साथ-साथ ही बहकर कहानी में गढ़ता जाता है। परंपराओं से आधुनिकता की यात्रा के कई पड़ाव इन कहानियों के कथ्य बनकर उभरे हैं।
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साह
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साहित्यकार हैं उनके साहित्य का प्रयोजन कालातीत है। उनके लिए साहित्य उनके शब्द और कर्म दोनों में रचा बसा है। साहित्य की आधारभूमि पर स्थित रहकर वे राजनीति, समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, आर्थिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। उनके कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए से देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण उनके साहित्य पर शोध का कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मौलिक शोध कार्य के हित मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया। अपने शोध कार्य को अन्य शोधार्थियों के अध्ययन व सुविधा के लिए इस शोध ग्रंथ को मैं शिक्षा जगत को सौंपती हूँ।
‘प्रीत बसेरा’ कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह है। पहले काव्य संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ की सफलता के बाद ‘प्रीत बसेरा’ में वे प्रेम में रची-पगी सी कविताएँ लाईं हैं।
‘प्रीत बसेरा’ कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह है। पहले काव्य संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ की सफलता के बाद ‘प्रीत बसेरा’ में वे प्रेम में रची-पगी सी कविताएँ लाईं हैं। प्रेम के सभी रूपों संयोग-वियोग, अनुराग-विराग, उल्लास-वेदना पर ने यहाँ अभिव्यक्ति पाई है। प्रेम में भीगी,कभी आह्लाद से रसीली तो कवि आँसुओं से सीली, आर्द्र मन से उपजी हुई कविताएँ हैं। उसी रस से सराबोर करने हेतु ये मधुर-मृदु कविताएँ आपके समक्ष पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। ‘प्रीत बसेरा’ के चार सर्गों ‘प्रेरणा’, ‘प्रकृति’, ‘प्रीति’ और ‘प्रतीति’ में संबंधों, सुषमा, शृंगार और स्त्रीमन की कविताएँ हैं। साधारणत: प्रत्येक साहित्यकार काव्य के द्वारा ही अपनी भावनाओं को शब्द देता है और इसी कड़ी में कवयित्री डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने भी काव्य विधा को आगे बढ़ाया है। डॉ. आरती के काव्य संग्रह से गुजरते हुए महसूस किया जा सकता है कि उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर परिवार के प्रति समर्पण के भाव हैं, वहीं दूसरी ओर रोजगार के सिलसिले में अपने देश, समाज, परिवार, सखी-सहेलियों से दूर होने की पीड़ा भी है। इस काव्य संग्रह में अस्मिता, अहमियत, मर्यादा, त्याग, समर्पण भाव को लेकर सरल शब्दों में कविताएँ रची गई हैं जिससे कोई भी पाठक इन्हें आसानी से आत्मसात कर सकता है। बिम्बों और अलंकारों से कविता मुक्त है। कविताओं की भाषा, शिल्प और शैली भी जटिल नहीं है। भावों की सघनता होने के कारण इन कविताओं को पढ़कर जितना महसूस किया जाएगा उतना ही इन कविताओं की तह तक पहुँचा जा सकता है। सामान्यतः कविता का पाठक केवल शब्दों को पढ़कर आनंदित होना चाहता है किंतु शब्दों के बीच जो फासला होता है कविता वहीं ठहरी होती है। जो इस अंतराल को समझ सकता है उन्हें इस पुस्तक को पढ़कर अच्छा लगेगा।
सौंदर्य व आस्था के करीब ...
‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ में कवयित्री ने मानव संवेदनाओं को समेटते हुए 62 कविताओं का समावेश किया है जिन्हें पाँच भागों में विभाजित किया है। वे है
सौंदर्य व आस्था के करीब ...
‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ में कवयित्री ने मानव संवेदनाओं को समेटते हुए 62 कविताओं का समावेश किया है जिन्हें पाँच भागों में विभाजित किया है। वे हैं ‘उपासना’, ‘उद्बोधन’, ‘उत्कर्ष’, ‘उत्सर्ग’ और ‘उद्गार’। डॉ. आरती की कविताओं की विशिष्टता यह है कि वे जीवन की सुंदरता को अनुभव करती हैं, साथ ही सौंदर्य व आस्था को काफी करीब से महसूस भी। उनकी कविताओं में नारी प्रधानता भी दिखती है। डॉ. आरती की कविताओं में विनम्र बोध का भी अहसास होता है। जिसमें शिल्प हिन्दी की सहज लयात्मकता पर संरचित है। कहने का मतलब उनका यह संग्रह अत्यंत सहज, सरल ढंग से मानव अनुभूतियों के अतीत, वर्तमान और भविष्य को कविता के पटल पर जाँचता, परखता है जिसमें उनकी संवेदनाएँ, उनके लेखन, क्षमता व अन्वेषण दृष्टि का आभास दिलाती हैं।
“नेमु! दो कप चाय ले आ गार्डन में।” अपने घुँघराले बालों को लपेटकर जूड़े का रूप देते हुए स्वर्णलेखा सीढ़ियों से उतरी Read More...
प्रीत का अरुण गुलाब यों, मेरे जूड़े में खोंस देना, कपोल-पंखुड़ी रंग खिले, स्नेह शीतल ओस देना। बंधन सात जनम फिर भी, मुझी Read More...
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