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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal‘फ़िबोनाची वितान’, पुस्तक की कहानियों में अनंत फैलाव की संभावना उपस्थित है। न केवल ‘फ़िबोनाची प्रेम’ में अनंत फैलाव प्रेक्षेपित है, ‘गजदंत’ स्त्रीत्व के स्वामित्व, स्वतंत्रता तथा स्वावलम्ब की परिधि के फैलाव की कहानी है तो प्रत्यावर्तन मानवता की प्रगति की किरणों की। ‘श्याम वर्ण के दर्पण’ जीवट से जीवन को एकत्र कर पुनर्स्थापित करती है तो ‘आधी माँ अधूरा कर्ज़’ तार-तार जोड़, भूतकाल को भविष्य में देख एक नई कहानी बुनती है। ‘प्रवासी लेखिका का फेंगशुई’ परिस्थितियों का संकुचन और विस्तीर्णता है तो ‘धूमिल मलिन’ बिखराव को संयत कर एकाग्रता की कथा है। ‘नुक्ताचीनी’ मन के तममय कोने में दबे स्नेह को प्रकाशमान करने की व्यथा है तो ‘लॉकेट’ निजमन को वंचित में आरोपित कर वृहद धरा पर संचरित करने की कथा है। कुछ ऐसे ही रेशे से बुनी ‘तैरते हुए पुल’ अपनी आस्थाओं, पूर्वधारणाओं और पक्षपातों को परित्याग, भिन्न आयाम को अपनाकर मानवता के संवर्धन को दर्शाती है और ‘दुर्घटना की दुआ’ डर से डरे को निडर बनाकर संवेदनाओं व सहानुभूतियों के परिमाण को प्रवर्धित करती है।
यू.ए.ई. की भूमि पर बुनी गई ग्यारह कहानियाँ प्रवासी मन की गुत्थियों को खोलते हुए, उलझनों को दूर कर, एक सुलझी हुई लच्छी बनकर सामने आती हैं। एक महीन बिंदु से आरंभ कर अपरिमेय रवि-किरण बनने की सम्पूर्ण संभावना इन कहानियों में व्याप्त है। स्त्री-संघर्ष के सूक्ष्म पात्र में रची ये कथाएँ, दृढ़ निश्चय का आधान कर, उपायों का संधान कर व अस्तित्व का अभिज्ञान कर अपने व्यक्तित्व को विस्तीर्ण कर सागर बन जाती हैं। एक ऐसा सिंधु जो उसमें डाले गए अवांछित को तट पर पटक आता है। स्त्री प्रधान ये कथाएँ नारी को नारी से मिलवाती हैं तो पुरुष को नारी मन में झाँकने का आमंत्रण देती हैं।
डॉ. आरती 'लोकेश'
डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने अंग्रेज़ी साहित्य मास्टर्स में कॉलेज में द्वितीय स्थान तथा हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि ली। तीन दशकों से शिक्षाविद हैं व वर्तमान में दुबई में कार्यरत रहते हुए साहित्य की सतत सेवा में लीन हैं।
पच्चीस वर्षों से दुबई में बसी डॉ. आरती ‘लोकेश’ द्वारा रचित 20 पुस्तकें प्रकाशित हैं। चार उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’, ‘कारागार’, ‘निर्जल सरसिज’, 'ऋतम्भरा के सौ द्वीप'; चार काव्य-संग्रह ‘काव्य रश्मि’ ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’, ‘प्रीत बसेरा’, 'षड्गंधा'; दो कहानी संग्रह ‘साँच की आँच’ व ‘कुहासे के तुहिन’, दो कथेतर गद्य-संग्रह ‘कथ्य अकथ्य’, ‘अश्रुत श्रव्य’; लघुकथा-संग्रह ‘दूर्वादल’; यात्रा-संस्मरण ‘झरोखे’; शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय का गद्य साहित्य और सामाजिक चेतना’; पाँच संपादित: ‘सोच इमाराती चश्मे से’, ‘होनहार बिरवान’, ‘डॉ. अशोक कुमार मंगलेश : काव्य एवं साहित्य चिंतन’, ‘अनन्य कृति यू.ए.ई.’, ‘यू.ए.ई. की चयनित रचनाएँ – स्वर्ण सचान काव्यजग’।
उनकी रचनाएँ 100 से अधिक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं तथा 50 से अधिक साझा संग्रहों में प्रकाशित हैं। इनके साहित्य पर पंजाब, उड़ीसा व हरियाणा के विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया जा रहा है व यूक्रेन में कहानियों पर शोध हो चुका है। 'अनन्य यू.ए.ई.' पत्रिका की मुख्य संपादक होने के साथ-साथ वे ‘श्री रामचरित भवन ह्यूस्टन’ की सह-संपादिका तथा ‘इंडियन जर्नल ऑफ़ सोशल कंसर्न्स’ की अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय संपादक हैं। प्रणाम पर्यटन पत्रिका की विशेष संवाददाता यूएई हैं। टैगोर विश्वविद्यालय तथा ‘विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस’ से सम्बद्ध हैं।
उन्हें मॉरीशस व भारत सरकार द्वारा 'आप्रवासी हिंदी साहित्य सृजन सम्मान', ‘प्रवासी महाकवि प्रो. हरिशंकर ‘आदेश’ स्मृति साहित्य सम्मान’, ‘रंग राची सम्मान’, ‘शिक्षा रत्न’ सम्मान, ‘हिंदी शिक्षक सम्मान’ 'शब्द शिल्पी भूषण सम्मान', 'प्रज्ञा सम्मान', ‘निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्माrन’, ‘प्रवासी भारतीय समरस श्री साहित्य सम्मान’; वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स लंडन, भारतीय कौंसलावास दुबई, अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच, वैश्विक हिंदी संस्थान ह्यूस्टन, यू.एस.ए., साहित्य अर्पण मंच दुबई द्वारा प्रशस्ति-पत्र मिला है। ‘शुभ संकल्प एवं हुनर फ़ोक्स एकेडेमी’, ‘हिंदी ग्लोबल फाउंडेशन सिंगापोर’, शिक्षा क्षेत्र मे
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