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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palस्त्री का हृदय मोम के जैसा होता है। तात्पर्य कोमलता से नहीं, मोम की इस विशेषता से है कि ज़रा सी ऊष्मा से पिघल जाता है। स्वयं जलकर दूसरों के आँगन में प्रकाश देता है, और अँधेरा अपने तले में एकत्र कर लेता है। जब उजाला फैलाने की ताकत नहीं रहती तो अँधेरे पर बिखरकर, जमकर उसे दूसरों तक पहुँचने से रोक लेता है।
कहा जाता है कि हर पुरुष की सफलता में एक स्त्री का हाथ निश्चित होता है। प्रश्न उठता है कि सफलता पर क्या पुरुष का एकछत्र साम्राज्य है। बदलते युग की बदलती नारी जब पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, बल्कि तेज़ चलकर आगे बढ़ रही है, तो सफलता पर उसका भी समान अधिकार सिद्ध हो चुका है। परंतु नारी की सफलता में भी किसी पुरुष की बराबर की भूमिका रहती है। फिर वह पुरुष चाहे पिता हो, भाई हो, पुत्र हो, पति हो या प्रेमी ही क्यों न हो। ये सभी कभी अभिप्रेरक तो कभी प्रेरक की, कभी मार्गदर्शक की तो कभी समीक्षक की, कभी सहयोगी की तो कभी परामर्शदाता की भूमिका अदल-बदल कर निभाते रहते हैं।
ऐसी ही कुछ मिश्रित भावनाओं में रुकते-चलते जीवन के उतार-चढ़ाव का चित्रण मैंने अपने उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ में करने का प्रयास किया है। अध्ययन की सुविधा तथा घटनाक्रम की तारतम्यता के अनुसार मैंने उपन्यास को 10 खंडों में विभक्त किया है। प्रत्येक खंड के नाम जैसे- पहला ‘यादों के भँवर’, दूसरा ‘उजली भोर’, तीसरा ‘उड़ान और बसेरा’, चौथा ‘उघड़ा ज़ख्म गहरा’, पाँचवाँ ‘रिश्तों की डोर’, छठा ‘बंधन के महीन धागे’, सातवाँ ‘मन भागे रे भागे’, आठवाँ ‘उपाय और निदान से आगे’, नौवाँ ‘शहनाई का आलम सुनहरा’ तथा दसवाँ व आखिरी ‘रोशनी का पहरा’ कहीं न कहीं उपन्यास की मुख्य पात्र ‘ऊष्मी’ के जीवन की लड़ियों को कुछ शब्दों में झलकाने का प्रयत्न हैं।
डॉ॰ आरती 'लोकेश'
बीस वर्षों से दुबई में बसी डॉ. आरती ‘लोकेश’ के दो उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ तथा ‘कारागार’ प्रकाशित हुए हैं। काव्य-संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’, ‘प्रीत बसेरा’ बहुत चर्चित हुए हैं। कहानी संग्रह ‘साँच की आँच’ तथा ‘कुहासे के तुहिन’ पर विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया जा रहा है। उपन्यास ‘ऋतम्भरा के शत्द्वीप’ जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय का गद्य साहित्य और सामाजिक चेतना’ पुस्तक से बहुत से शोध-छात्र लाभ उठा रहे हैं। काव्य-संग्रह ‘काव्य रश्मि’, कथा-संकलन ‘झरोखे’ तथा शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ की ई-पुस्तक भी प्रकाशित है।
डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री में कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। तत्पश्चात हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। बनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान से हिंदी साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि हासिल की। पिछले तीन दशकों से शिक्षाविद डॉ. आरती ‘लोकेश’ (गोयल) शारजाह में वरिष्ठ प्रशासनिक पद पर सेवाएँ दे रही हैं। साथ ही साहित्य की सतत सेवा में लीन हैं। पत्रिका, कथा-संग्रह, कविता-संग्रह संपादन तथा शोधार्थियों को सह-निर्देशन का कार्यभार भी सँभाला हुआ है। टैगोर विश्वविद्यालय के ‘विश्वरंग महोत्सव’ की यू.ए.ई. निदेशिका हैं। ‘विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस’ की यू.ए.ई हिंदी समंवयक हैं। ‘श्री रामचरित भवन ह्यूस्टन’ की सह-संपादिका तथा ‘इंडियन जर्नल ऑफ़ सोशल कंसर्न्स’ की अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय संपादक हैं। प्रणाम पर्यटन पत्रिका की विशेष संवाददाता यूएई हैं।
उनकी कहानियाँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘शोध दिशा’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती, ‘गर्भनाल’, ‘वीणा’, ‘परिकथा’, ‘दोआबा’ तथा ‘समकालीन त्रिवेणी’, ‘साहित्य गुंजन’, ‘संगिनी’, ‘सृजन महोत्सव’ पत्रिका में, ‘21 युवामन की कहानियाँ’ तथा ‘सोच’ पुस्तक में क्रमश: प्रकाशित हुई हैं। अन्य कहानियाँ सरस्वती, कथारंग, विश्वरंग आदि में चयनित हैं। आलेख: ‘वर्तनी और भ्रम व्याप्ति’ ‘गर्भनाल’ पत्रिका तथा ‘खाड़ी तट पर खड़ी हिंदी’ ‘हिंदुस्तानी भाषा भारती’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। प्रवासी साहित्य: कविताएँ ‘मुक्तांचल’ पत्रिका के ‘प्रवासी कलम’ कॉलम में, यात्रा संस्मरण- ‘प्रणाम पर्यटन’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुए। तथ्यात्मक आलेख ‘वीणा’ में 2
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