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jeevan ek khel anek / जीवन एक खेल अनेक

Author Name: Arvind Kumar Samarwar | Format: Paperback | Genre : Others | Other Details

""एक महोब्बत ऐसी भी"

शाम का समय था। मैं रेलवे स्टेशन पर एक बैंच पर एकांत में बैठा ट्रैन का इंतजार कर रहा था। ट्रैन दो घंटे बाद आने वाली थी।

अचानक एक सुंदर सी महिला मेरे पास आकर बैठ गई।

मैं महिलाओं से वैसे ही घबराता हूँ। अनजान हो तो मेरी जान ही निकलने लगती है।

कुँवारा ब्रह्मचारी आदमी ठहरा इतने करीब जनानी को कैसे सहन कर पाता। मैं खड़ा होकर चलने लगा तो उसने कहा बैठ जाओ।

मैंने आँखों से प्रश्न किया:-",???"

जवाब में वह बोली:-", पहचाना नही क्या?"

मैंने "ना", में गर्दन हिलाई।

उसने उदास होकर कहा:-"मैं दामिनी"।

"ओह" मेरे मुख से बस इतना ही निकला।

यादों पर जमा कुछ कोहरा हटा और गौर से उसका चेहरा देखा तो उसकी दस साल पुरानी वास्तविक आकृति जहन में उभर आई। मोहल्ले की लड़की थी। साथ में भी पढ़ी थी। सालभर पागल भी रही थी।

"बहुत दर्द हुआ आज, जिसके लिए खुद को बर्बाद कर लिया। वो शख्स तो मुझे पहचानता भी नही"। वो मरी आवाज में बोली।

मैं कुछ समझ नही पाया। आँखों में प्रश्न लेकर उसकी और देखा:-???"

"मैंने तुम्हे इतना चाहा? तुम्हे कुछ भी पता नही?"

मैंने फिर "ना" में गर्दन हिलाई।

"याद कर 12 वीं कक्षा में तेरी कॉपी में "I LOVE YOU लिख कर किसी ने पर्ची दबाई थी?

"हाँ, मग़र वह तो किसी लड़के की करतूत थी"।

"पागल, वो कोई लड़के की मजाक नही मैं ही थी"।

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अरविंद कुमार समरवार

मुझे लिखने का शौक बचपन से ही था और कुछ कहानियों को मैंने लिखा भी लेकिन अच्छा प्लेटफार्म ना मिलने की वजह से मैंने बहुत कुछ खोया लेकिन मुझे इतना यकीन था की कलम और तलवार की लड़ाई होती है तो कलम की विजय होगी

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