You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palपण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा रचित ‘गोवर्धन मठ’ उपन्यास उनके द्वारा जगद्गुरु शंकराचार्य पर सृजित दस उपन्यासों में से एक है। इस उपन्यास में समसामयिक राजनीति, सामाजिक अन्तर्विरोध, साम्प्रदायिक विडम्बना एवं कट्टर मत मतान्तर के पारस्परिक वैर का तादृश्य चित्रण है। सभी मतवादी पण्डित और विद्वान अपने मत की विजय तथा अन्य मतों की पराजय चाहते हैं। चारों ओर यज्ञों में हिंसा, आचार की विवेक शून्यता, विषम रूढ़ियां, जातिगत क्रूर अनुशासन, हीन भावना आदि से समाज सड़ रहा था। प्रजा दिशाहीन थी। इस पृष्ठभूमि के सजीव चित्रण के साथ ज्ञान और भक्ति का अनुपम अपूर्व संगम का सृजन उपन्यासकार ने किया है। जगद्गुरू शंकर की महाभाव की स्थिति, पद्मपाद की भक्ति के आवेश में चित्ताकाश में गूंजती स्तवन ध्वनि का आलेखन इस उपन्यास की अनूठी विशेषता है।
अन्त में स्पष्ट कर दिया है कि यह माया, जगत, दर्पण खण्ड-खण्ड है और ब्रह्म की धारणाओं के प्रतिबिंबों से भरा है। बिंब एक है, अखण्ड है, अभय है। विष्वास सत्य का ही है। देह की तो छाया तथा जगत् की माया है। शास्त्र आत्मा का विचार करता है, वेदान्त आत्मा को प्रत्यक्ष करवाता है। गृहस्थों के लिए अनासक्त कर्म तथा जगन्नाथ की शरणागति ही चाहिए। सर्वज्ञ सभी में ब्रह्म है, प्रज्ञान है। अतः महावाक्य हुआ- ‘‘प्रज्ञानम् ब्रह्म’’
प. जनार्दन राय नागर
पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत् तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति हुई वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है। शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित दस उपन्यासों की श्रृंखला है, यह हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’ के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘ऊदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।
पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन-मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।
राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.