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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palएहसास से बढ़कर और कुछ नहीं। महसूस तो सभी करते हैं लेकिन उन्हें बयाँ करने का सबका अपना तरीक़ा है, सबकी अपनी ज़बाँ है। 'एहसास की ज़बाँ' नज़्में, शाइरी और ख़याल का किताबी-संदूक़ है, जिसमें से औरत के कई एहसास खुलकर सामने आते हैं - उसका ग़ुस्सा, नाराज़गी, इंसानियत, मोहब्बत, नफ़रत, ख़ुदग़र्ज़ी, ईश्वर-ख़ुदा की जुस्तजू, चाँद-सूरज के ख़्वाब और पुरुष-प्रधान समाज के ख़िलाफ़ लड़ाई! अपने संदूक़ से निकाले हुए ये एहसास औरत ने लिबास की तरह पहने हैं और उनमें से कई अपने जिस्म और ज़ेहन से उतार भी फेंकें हैं।
तपस्या भट्ट कपूर
तपस्या भट्ट कपूर का रूटीन हैं नज़्में, कॉफ़ी, पति, बेटी, अरब सागर में ढलता सूरज, सूफ़ी संगीत, चाँद और सिटी-लाइट्स! नज़्मों से इनका गहरा नाता है; जैसा लोगों का अपने महबूब से होता है बिलकुल वैसा! इनकी नज़्में गुज़रे वक़्त और नए दौर के बीच का पुल हैं जिस पर चलकर कई एहसास, हसरतें, रिश्ते और नज़रिये आपस में टकराते हैं, कुछ मर जाते हैं, कुछ ज़िंदा हो जाते हैं। एक तरफ़ अपनी नज़्में और ख़याल परफ़ॉर्म करने की शौक़ीन हैं तो दूसरी तरफ़ दिनों-महीनों तक किसी महफ़िल में दिखाई नहीं देतीं; पूछो तो मालूम होता है कि किताब लिखने में व्यस्त हैं, बेटी के साथ सुकून के लम्हे बिताने में ख़ुश हैं, गोवा के किसी बीच पर टहलने में मग्न हैं। कभी-कभी फ्रीलान्स कॉपीराइटिंग करती हैं। रेडियो माध्यम ज़्यादा पसन्द है।
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