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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalRajiv Ranjan Mishra(Rajiv Ranjan) is a former Chairman-cum-Managing Director (CMD) of Western Coalfields Limited. With 38+ years of experience behind him, Rajiv Ranjan is considered a stalwart in the Coal Industry. During his tenure as CMD of ailing Western Coalfields Limited, he scripted a remarkable turnaround of the company making it one of the most innovative coal companies in India. He is known for his Positive thinking, Out-of-box initiatives, HR centric approach and grand vision for Coal Sector leading to many first of its kind initiatives in India like Eco-Mine Tourism, Coal Neer and DRead More...
Rajiv Ranjan Mishra(Rajiv Ranjan) is a former Chairman-cum-Managing Director (CMD) of Western Coalfields Limited. With 38+ years of experience behind him, Rajiv Ranjan is considered a stalwart in the Coal Industry. During his tenure as CMD of ailing Western Coalfields Limited, he scripted a remarkable turnaround of the company making it one of the most innovative coal companies in India. He is known for his Positive thinking, Out-of-box initiatives, HR centric approach and grand vision for Coal Sector leading to many first of its kind initiatives in India like Eco-Mine Tourism, Coal Neer and Diversification to Sand production. Hon’ble Prime Minister appreciated his initiatives in his Mann ki Baat programme.
Mr. Mishra was honoured with the Asia Pacific HRM Congress 'Most Powerful HR Professional of India Award’ and the 'Elates PSU Summit Leadership Award'. He has many more awards to his name. He is a good orator and also a good writer.
He is presently engaged with World Bank as Sr.Energy Consultant.
Read Less...Achievements
कमली,
इसी नाम से सभी पुकारते थे, उस चुलबुली-सी लड़की को। बहुत कम लोग जानते थे, उसका असली नाम। उसके दोस्त, रिश्तेदार और यहाँ तक स्कूल में उसके शिक्षक, उसे कमली कहते थे। बड़ी सुंदर
कमली,
इसी नाम से सभी पुकारते थे, उस चुलबुली-सी लड़की को। बहुत कम लोग जानते थे, उसका असली नाम। उसके दोस्त, रिश्तेदार और यहाँ तक स्कूल में उसके शिक्षक, उसे कमली कहते थे। बड़ी सुंदर थी वह, लंबी, गोरा रंग और तीखे नाक-नक़्श। बचपन से बहुत तेज और शरारती थी। स्कूल में उसके ज़्यादातर दोस्त लड़के थे। उन सब में उसका सबसे करीबी दोस्त अतुल था।
खेलकूद के साथ-साथ कमली पढ़ाई में तेज थी। वह हर साल क्लास में अव्वल आती। बचपन में सिर से पिता का साया उठ जाने के बावजूद, कमली के लालन-पालन में उसकी माँ ने जितना बन पाया, उतना किया। वैसे घर की माली हालत ठीक नहीं थी।
घर में ट्यूशन कर उसने मेडिकल टेस्ट की कोचिंग ली। बारहवीं बोर्ड में राज्य में प्रथम स्थान पर रही और उसके बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा में उसे राज्य में दूसरा स्थान मिला। मेडिकल की पढ़ाई के पैसों के लिए वह कोचिंग क्लास में टीचर बनी। अपनी मेहनत की कमाई से छह वर्ष की पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनी।
इसके बाद की कहानी, कमली की जिंदगी की कश्मकश, प्यार, पीड़ा, धोखा, अपनों के बिछड़ने की है। बचपन से जवानी तक विपरीत स्थिति में अपने बूते पर जिंदगी से लड़ाई लड़ने वाली लड़की की कहानी है........कमली।
कमली,
इसी नाम से सभी पुकारते थे, उस चुलबुली-सी लड़की को। बहुत कम लोग जानते थे, उसका असली नाम। उसके दोस्त, रिश्तेदार और यहाँ तक स्कूल में उसके शिक्षक, उसे कमली कहते थे। बड़ी सुंदर
कमली,
इसी नाम से सभी पुकारते थे, उस चुलबुली-सी लड़की को। बहुत कम लोग जानते थे, उसका असली नाम। उसके दोस्त, रिश्तेदार और यहाँ तक स्कूल में उसके शिक्षक, उसे कमली कहते थे। बड़ी सुंदर थी वह, लंबी, गोरा रंग और तीखे नाक-नक़्श। बचपन से बहुत तेज और शरारती थी। स्कूल में उसके ज़्यादातर दोस्त लड़के थे। उन सब में उसका सबसे करीबी दोस्त अतुल था।
खेलकूद के साथ-साथ कमली पढ़ाई में तेज थी। वह हर साल क्लास में अव्वल आती। बचपन में सिर से पिता का साया उठ जाने के बावजूद, कमली के लालन-पालन में उसकी माँ ने जितना बन पाया, उतना किया। वैसे घर की माली हालत ठीक नहीं थी।
घर में ट्यूशन कर उसने मेडिकल टेस्ट की कोचिंग ली। बारहवीं बोर्ड में राज्य में प्रथम स्थान पर रही और उसके बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा में उसे राज्य में दूसरा स्थान मिला। मेडिकल की पढ़ाई के पैसों के लिए वह कोचिंग क्लास में टीचर बनी। अपनी मेहनत की कमाई से छह वर्ष की पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनी।
इसके बाद की कहानी, कमली की जिंदगी की कश्मकश, प्यार, पीड़ा, धोखा, अपनों के बिछड़ने की है। बचपन से जवानी तक विपरीत स्थिति में अपने बूते पर जिंदगी से लड़ाई लड़ने वाली लड़की की कहानी है........कमली।
दरअसल, कोयला उद्योग को दो बार आज़ादी मिली। एक आज़ादी 1947 में, जब हमारा देश आज़ाद हुआ और देश के विकास की बागडोर हम भारतीयों के हाथ में आई और दूसरी, जब कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ। आज़
दरअसल, कोयला उद्योग को दो बार आज़ादी मिली। एक आज़ादी 1947 में, जब हमारा देश आज़ाद हुआ और देश के विकास की बागडोर हम भारतीयों के हाथ में आई और दूसरी, जब कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ। आज़ादी के बाद भी इस उद्योग में उम्मीद के अनुसार तरक्की नहीं दिखी। आर्थिक लाभ के लोभ की मंशा से चंद पैसे वालों ने कोयले की खदानें चलानी शुरू कर दीं। बिलकुल अमानवीय माहौल में खदान मजदूर काम कर, किसी तरह अपना गुजारा कर रहे थे। वर्ष 1972 के मई में पहले कोकिंग कोयले की खदानें और पुनः मई, 1973 में सभी गैर-कोकिंग कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ।
हालाकि, यह किताब उद्योग के अंधेरे से उजाले में जाने की कहानी है, लेकिन इसके साथ-साथ आज की स्थिति में भविष्य की रूपरेखा और चुनौती पर भी चर्चा जरूरी महसूस की गयी। एक तरफ देश को ऊर्जा की जरूरत और दूसरी ओर पर्यावरण को बचाना। क्या यह दोनों संभव होंगे? क्या कहते हैं इस उद्योग के कर्णधार और क्या कहती है वर्तमान और भावी पीढ़ी।
कोयला उद्योग की यात्रा और इससे जुड़े आज तक के सभी पहलुओं की कहानी है यह किताब – ‘अंधेरा उजाला’।
आसमां में सुराख” कोयला उद्योग के कर्मियों की मेहनत और चुनौती भरे कार्य और उनके द्वारा देशहित में किए जा रहे भीड़ से अलग हटकर कार्य को दुनिया के सामने लाने की एक छोटी-सी पहल है। ये क
आसमां में सुराख” कोयला उद्योग के कर्मियों की मेहनत और चुनौती भरे कार्य और उनके द्वारा देशहित में किए जा रहे भीड़ से अलग हटकर कार्य को दुनिया के सामने लाने की एक छोटी-सी पहल है। ये कोयला कर्मी जब साल के तीन सौ पैंसठ दिन ज़मीन के नीचे या ऊपर कोयला निकालकर विद्युत केन्द्रों को ईंधन के रूप में भेजते हैं, तब जाकर हमारे-आपके घर में बिजली जलती है।
देश की ऊर्जा की जरूरत को पूरी करने वाले पर्दे के पीछे के इन लोगों के बारे में हम-आप कम जानते है। लेकिन इनके कार्य कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। इनकी लगन, मेहनत हमारे-आपके लिए मार्ग दर्शन का कार्य कर सकती है। इनके द्वारा लगभग रोज़ असंभव से लगने वाले कार्य को संभव करने के बारे में जान कर हम सभी प्रोत्साहित हो सकते हैं। हम और आप यह जानें कि कैसे ये कर्मी, चाहे पुरुष हों या महिला, हमारे-आपके और देश की खुशहाली के लिए अपना पसीना बहाते हैं।इस किताब में इन्हीं सब पर चर्चा होगी,छोटी-छोटी कहानियों के रूप में।
वास्तविक कहानियाँ आसमां में सुराख करने वालों की.......।
अपनी स्थापना के लगभग 40 वर्ष के बाद क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी बीमार घोषित होने के कगार पर थी। इससे न केवल इसमें कार्य करने वाले कर्मी चिंतित थे, बल्कि कंपनी पर आश्रित कई लघु उद्योग
अपनी स्थापना के लगभग 40 वर्ष के बाद क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी बीमार घोषित होने के कगार पर थी। इससे न केवल इसमें कार्य करने वाले कर्मी चिंतित थे, बल्कि कंपनी पर आश्रित कई लघु उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट था। इलाके के उद्योगपति, जनप्रतिनिधि, ग्रामीण तथा अन्य हितधारकों में यह चर्चा का विषय था। लोगों का मानना था कि अब कोई चमत्कार इस संकट से उबार सकता है। और तब......
असंभव संभव। मानव पूंजी में विश्वास पैदा कर सफल होने की यात्रा।एक कंपनी के शुरू से आखिरी कड़ी तक के कर्मियों को परिवार में परिवर्तित होने की सच्ची कहानी। उनका ख्याल रखकर, उनकी बातों को सुनकर, उनके गुणों को बताकर, उनमें विश्वास पैदा कर, असंभव लक्ष्य को संभव करने की मिसाल।
मानव पूंजी प्रबंधन का यह एक उदाहरण है। यह एक टीम, एक परिवार की दास्तान है, जिसने कठिन परिस्थिति में धैर्य नहीं खोया और सफलता हासिल कर साबित कर दिया, असंभव संभव है......
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