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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalMathura Kalauny’s memories of a boyhood spent in the Kumaon Hills are so deep and strong that glimpses of those emotions creep up sometimes in his writings. He is adept at presenting the most serious subject in a light-hearted, humorous and satirical way. He captivates the reader by weaving varied human emotions in his amazing descriptive style. He started his literary journey four decades ago. He founded the Kalayan Natya Sanstha in Bangalore in 1988 and started publishing the webzine Kalayan Patrika (www.kalayan.org) in 1999. He has more than 150 short stories published in various nationalRead More...
Mathura Kalauny’s memories of a boyhood spent in the Kumaon Hills are so deep and strong that glimpses of those emotions creep up sometimes in his writings. He is adept at presenting the most serious subject in a light-hearted, humorous and satirical way. He captivates the reader by weaving varied human emotions in his amazing descriptive style.
He started his literary journey four decades ago. He founded the Kalayan Natya Sanstha in Bangalore in 1988 and started publishing the webzine Kalayan Patrika (www.kalayan.org) in 1999. He has more than 150 short stories published in various national magazines to his credit.
In the last 32 years, he has written and staged 21 full-length plays, and more than a dozen short plays. His ten plays and four short novels are also available as publications. He has staged two of his plays in Dubai. He has also been invited to the Hindi Sammelan held in various locations like Cambodia, Beijing, Assam, Meghalaya, Rajasthan and Bali, where he has recited his plays.
After retiring from the post of Research Manager with ITC Limited, he currently devotes his time to writing and directing plays for his theatre group Kalayan, and managing and editing Kalayan Patrika.
Email: editor@kalayan.org
Website: www.mathurakalauny.com
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जब ध्रुव का बिछड़ा दोस्त महेश उससे मिलने आता है तो उसे क्या मालूम था कि उसके साथ कुछ ऐसा घटेगा जिसकी कल्पना वह इस जन्म में तो क्या किसी जन्म में भी नहीं कर सकता था। वह अपने को एक ऐसे
जब ध्रुव का बिछड़ा दोस्त महेश उससे मिलने आता है तो उसे क्या मालूम था कि उसके साथ कुछ ऐसा घटेगा जिसकी कल्पना वह इस जन्म में तो क्या किसी जन्म में भी नहीं कर सकता था। वह अपने को एक ऐसे नये परिवेश में पाता है जहाँ उसे अपने ही घर के बारे में कुछ मालूम नहीं रहता है। आप मिलेंगे जनार्दन से जिसने जीवन का निचोड़ बोतल में खोज निकाला है, जुल्फ़ी से जो नौकर कम शायर ज्यादा है, पड़ोस की छम्मक छल्लो मल्लिका से... रुकिए रुकिए... यहाँ एक चोर भी है। और इन सब के बीच में है चंद्रा।
“लोग गायब हो जाते हैं, गुम हो जाते हैं, पर यह पहली बार है कि आदमी चोरी हो गया है।“
हँसी ठहाकों से भरपूर नाटक जिसके पात्र पाठकों को बहुत दिनों तक गुदगुदाते रहेंगे।
कब तक रहें कुँवारे ऐसे युवक-युवतियों की कहानी है जिनकी किसी कारणवश यथासमय शादी नहीं हो पाती है। एकाकी जीवन बिताने के लिए बाध्य ऐसे युवक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं इसलिए ब्रह्म
कब तक रहें कुँवारे ऐसे युवक-युवतियों की कहानी है जिनकी किसी कारणवश यथासमय शादी नहीं हो पाती है। एकाकी जीवन बिताने के लिए बाध्य ऐसे युवक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं इसलिए ब्रह्मचारी कहलाते हैं, जब तक कि शादी नहीं हो जाती है। कभी ग्रहों की दशा ऐसी होती है कि वर्ष पर वर्ष बीतते चले जाते हैं, लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी उनकी शादी नहीं हो पाती है। ऐसे लोगों को हम कठिन ब्रह्मचारी कहते हैं।
साधारण ब्रह्मचारी की शादी होने की बहुत संभावनाएँ रहती हैं। कठिन ब्रह्मचारी की एकदम जीरो। फिर भी वह उम्मीद नहीं छोड़ता। क्या पता कभी कोई भूली-भटकी उसका दरवाजा खटखटाए। यदि कभी कोई लड़की उसका दरवाजा न खटखटाए तो वह कठिन ब्रह्मचारी से जटिल ब्रह्मचारी बन जाता है। पात्रों से मिल कर आपको पता लगेगा कि कौन-सा युवक ब्रह्मचर्य की किस श्रेणी में है और कौन-सी युवती विवाहोन्मुख है।
रसीले संवाद, चुटीले व्यंग्य और शेर-ओ-शायरी से सुसज्जित है यह नाटक कब तक रहें कुँवारे।
कब तक रहें कुँवारे ऐसे युवक-युवतियों की कहानी है जिनकी किसी कारणवश यथासमय शादी नहीं हो पाती है। एकाकी जीवन बिताने के लिए बाध्य ऐसे युवक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं इसलिए ब्रह्म
कब तक रहें कुँवारे ऐसे युवक-युवतियों की कहानी है जिनकी किसी कारणवश यथासमय शादी नहीं हो पाती है। एकाकी जीवन बिताने के लिए बाध्य ऐसे युवक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं इसलिए ब्रह्मचारी कहलाते हैं, जब तक कि शादी नहीं हो जाती है। कभी ग्रहों की दशा ऐसी होती है कि वर्ष पर वर्ष बीतते चले जाते हैं, लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी उनकी शादी नहीं हो पाती है। ऐसे लोगों को हम कठिन ब्रह्मचारी कहते हैं।
साधारण ब्रह्मचारी की शादी होने की बहुत संभावनाएँ रहती हैं। कठिन ब्रह्मचारी की एकदम जीरो। फिर भी वह उम्मीद नहीं छोड़ता। क्या पता कभी कोई भूली-भटकी उसका दरवाजा खटखटाए। यदि कभी कोई लड़की उसका दरवाजा न खटखटाए तो वह कठिन ब्रह्मचारी से जटिल ब्रह्मचारी बन जाता है। पात्रों से मिल कर आपको पता लगेगा कि कौन-सा युवक ब्रह्मचर्य की किस श्रेणी में है और कौन-सी युवती विवाहोन्मुख है।
रसीले संवाद, चुटीले व्यंग्य और शेर-ओ-शायरी से सुसज्जित है यह नाटक कब तक रहें कुँवारे।
मानव विश्वमित्र एक ढीला-सा, ढाला-सा व्यक्ति है। बुद्धि शायद है पर इस्तमोल करने का कष्ट अब कौन उठाये। वैसे ही वह अपने मित्रों से बहुत परेशान है, ऊपर से रघुवर नाथ और उसकी रूपगर्वि
मानव विश्वमित्र एक ढीला-सा, ढाला-सा व्यक्ति है। बुद्धि शायद है पर इस्तमोल करने का कष्ट अब कौन उठाये। वैसे ही वह अपने मित्रों से बहुत परेशान है, ऊपर से रघुवर नाथ और उसकी रूपगर्विता पत्नी प्रेमा उसके घर में मेहमान हैं। उसके बचपन का मित्र गोविंद शर्मा एक तड़कीला-भड़कीला युवक है जो दिल हाथ में लिए उछालता फिरता है कि कोई तो हो जो उसे लोप ले। इस बार लोपा रघु की पत्नी प्रेमा ने।
आप मिलेंगे धनंजय से जिसे डाक्टर सुगंधा ने घायल किया हुआ है। यहाँ पर डरजीत कुमार भी है जो बहुत सोच-विचार कर पूरे आत्मविश्वास के साथ जयमाला के सामने अपना प्रेम-प्रस्ताव रखता है। जयमाला ने क्या किया यह तो नाटक में ही पता चलेगा।
और इन सब के बीच में रघु रचता है एक षडयंत्र। वह भरी महफिल में बंटी को आत्महत्या के लिए उकसाता है। क्या वह स्वयं ही अपने रचे षडयंत्र का शिकार हो जाता है? अनोखे पात्रों वाला हँसी-ठहाकों से भरपूर नाटक।
अशोक अवंती में ही रम गया था। यौवन की देहली थी और महादेवी का सान्निध्य। पर मौर्य साम्राज्य को सिंहासन का उत्तराधिकारी चाहिए था। महादेवी ने अनिच्छुक अशोक को पाटलीपुत्र जाने के लि
अशोक अवंती में ही रम गया था। यौवन की देहली थी और महादेवी का सान्निध्य। पर मौर्य साम्राज्य को सिंहासन का उत्तराधिकारी चाहिए था। महादेवी ने अनिच्छुक अशोक को पाटलीपुत्र जाने के लिए बाध्य किया। स्वयं महेन्द्र और संघमित्रा के साथ अवंती में ही रह गयी। उसने अशोक से कहा था, पहले तुम साम्राज्य के हो फिर मेरे हो। अशोक पाटलीपुत्र गया। विविधताओं से भरे एक विशाल साम्राज्य को एक शासन सूत्र और जाति-घर्म-वर्ग से ऊपर एक दण्डसंहिता में बाँधा। अपने आदेश-संदेश कई भाषाओं में शिलालेखों में अंकित करवाये। अल्प समय में ही वह इस विशाल साम्राज्य के जनमानस का आदरणीय और आदर्श बन गया।
युवराज सुशीम, राजकुमार ऋपुदमन और सुकीर्ति की असमय मृत्यु उसे उद्वेलित करती रहती थी। सारे साक्ष्य कलिंग राजसभा की ओर इंगित करते थे, विशेष कर नंदवंश के महानंद की ओर। पर उसके अशांत मन में एक सम्राट की वर्जनाओं का ढक्कन लगा हुआ था। एक उन्माद था जिसमें आगामी युद्ध की संभावना परिलक्षित थी।
नाटककार मथुरा कलौनी की कलम से जीवन की भिन्न दशाओं एवं परिस्थितियों में फँसे मनुष्यों पर चार सशक्त लघु नाटकों का कोलाज है दशा।
लंगड़ - श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबा
नाटककार मथुरा कलौनी की कलम से जीवन की भिन्न दशाओं एवं परिस्थितियों में फँसे मनुष्यों पर चार सशक्त लघु नाटकों का कोलाज है दशा।
लंगड़ - श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी का पात्र लंगड़ एक ऐसे धर्म की लड़ाई में फँसा है जहाँ व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के नियम-कानून हैं। भ्रष्टाचार की आचारसंहिता है। नकलनबीस और लंगड़ के बीच का नैतिक द्वंद्व व्यवस्था में प्रच्छन्न भ्रष्टाचार पर स्पॉटलाइट है।
तू नहीं और सही - लिव-इन रिलेशनशिप की आड़ में रिश्तों की गहराई को तलाशती और जीवन से जूझती एक पूर्णतया भावनात्मक मोह-प्रलोभन से मुक्त नारी की व्यथा-कथा है।
चिराग का भूत –घरेलू चिंताओं में फँसे एक आम आदमी को अलादीन का चिराग मिलता तो है पर जिन्न से क्या माँगे के संशय में वह जिन्न को नून-तेल-लकड़ी के जाल में इतना उलझा देता है कि जो परिणाम होता है वह कल्पनातीत है।
कौन हो तुम बृहन्नला - बृहन्नला के प्रति उत्तरा की जिज्ञासा के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े किन्नरों की दशा में झाँकता हुआ नाटक।
सींग कटा कर नाटक मंडली के बछड़ों में शामिल हुए थे परमानंद काका, पर ऐन मौके पर बीमार पड़ गये और आवाज तक बैठ गयी। ऐसे में रुकुमा का प्रवेश होता है। रुकुमा का कहॉं तो एकदम व्यवस्थित
सींग कटा कर नाटक मंडली के बछड़ों में शामिल हुए थे परमानंद काका, पर ऐन मौके पर बीमार पड़ गये और आवाज तक बैठ गयी। ऐसे में रुकुमा का प्रवेश होता है। रुकुमा का कहॉं तो एकदम व्यवस्थित धरेलू जीवन था। शादी पहले से ही तय थी। और यहाँ नाटक मंडली में स्टेज में लड़की का भेष धारे गजेन्द्र से टकराती है। प्यार में ऐसे डूबती है कि सब संयम दरकिनार हो जाते हैं।
धनसिंह को लगता था कि गजेन्द्र और रुकुमा का प्यार कुमाऊँ की प्रेमकथा का एकदम आधुनिक और आकर्षक संस्करण है। कैसा था उनका प्रेम? नायक अपनी नायिका से प्रथम मिलन में एक लोकगीत के सहारे पूछता है कि हे प्रेयसी, जाई और चंपा के फूल खिले हैं। खेत में सरसों फूली है। आज के दिन इस महीने हम मिले हैं, अब फिर कब होगी भेंट? जब भेंट हुई तो सिर में डंडे खाये, पहाड़ की चोटी से धकेला गया। याददास्त तक चली गयी। वह तो भला हो चिंतामणि वैद्य और उसकी नातिनी का कि समय लगा पर याददास्त लौट आयी। इस बीच रुकुमा पर क्या बीती? हास्य रस से भरपूर, उत्तराखण्ड में रची-बसी एक बेहद दिलचस्प प्रेम कहानी।
यह हास्य और रोमांच के दो लघु उपन्यासों का संकलन है। चंद्रभवन तृप्तिभवन दो मित्रों की आपस में गुत्थमगुत्था उलझी हुई प्रेम कहानियों की हास्य रस से भरपूर दास्तान है। केशव और दीपा
यह हास्य और रोमांच के दो लघु उपन्यासों का संकलन है। चंद्रभवन तृप्तिभवन दो मित्रों की आपस में गुत्थमगुत्था उलझी हुई प्रेम कहानियों की हास्य रस से भरपूर दास्तान है। केशव और दीपा का प्रेम इसलिए आगे नहीं बढ़ पा रहा है कि केशव सर्वथा धनहीन है। उसके धनवान होने की चाभी उसके मित्र माधव के पास है। माधव की प्रेमिका कांता का विवाह केशव से होना तय है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए चारों एक योजना बनाते हैं जिसमें मुख्य भूमिका एक ककड़ी की होती है… हास्य रस से भरपूर अनोखे पात्रों की अनूठी कहानी।
विषकन्या, एक डिफेंस कन्या सरिता की रोमांचक कहानी है। सरिता को कोई ट्रैक कर रहा है और समय-समय पर उसे गुमनाम फोन करता है या ईमेल भेजता है। सरिता एक डिटेक्टिव एजेंसी के पास जाती है, फिर आरंभ होता है एक रोलर-कोस्टर घटनाक्रम जिसमें आत्महत्या है,रहस्य है, रोमांच है और भरपूर हास्य तो है ही।
एक शाम प्रेमचंद के नाम, प्रेमचंद के जीवन की दिशा निर्धारित करने वाली घटनाओं और उनकी कुछ कालजयी कहानियों का नाट्यरूपांतरण है। इसमें कुछ नये प्रयोग किये गये हैं। कहानियों
एक शाम प्रेमचंद के नाम, प्रेमचंद के जीवन की दिशा निर्धारित करने वाली घटनाओं और उनकी कुछ कालजयी कहानियों का नाट्यरूपांतरण है। इसमें कुछ नये प्रयोग किये गये हैं। कहानियों में वर्णनात्मक विवरण से अधिक दृश्यों को महत्व दिया गया है। प्रेमचंद की जीवनी को भी यथेष्टरूपेण दृश्यात्मक(विजुअल) बनाया गया है।
कफन एक मर्मस्पर्शी विडंबनापूर्ण करुण-हास्यकथा है। एक स्त्री की प्रसव-पीड़ा झेलते-झेलते मृत्यु हो जाती है। उसके पति व ससुर कफन के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं। पर उन्हें आभास होता है कि यह सब कितना निरर्थक है। कथानक भयावह दारिद्र्य में भी जीने की सहज प्रवृत्ति दर्शाता है।
सद्गति में प्रेमचंद ने अछूतों के सामाजिक शोषण और उच्च वर्गों द्वारा उन पर किये जा रहे अमानवीय अत्याचार का निरूपण किया है। ऐसा काला सच जो आज के भारत में भी रह-रह कर अपना सर उठाता है।
पंच-परमेश्वर सरपंच के न्याय की कहानी है। जलन और द्वेष की कहानी है। साथ ही जिम्मेदार पद की गरिमा की रक्षा की कहानी है।
पूस की रात एक निर्धन किसान की कहानी है। वह कैसे पूस की हाड़ कँपा देनेवाली भयानक ठंड में खेत में अपने कुत्ते जबरा के साथ रात बिताने के लिये विवश है।
एक शाम प्रेमचंद के नाम में स्वयं प्रेमचंद और उनकी कहानियों के पात्र, पन्नों से बाहर निकल कर आपको कठघरे नें खड़ा कर देते हैं।
Dhature Ke Beej is a story of a young girl who dared to escape her circumstances, and became an eternal traveler. In one of her journeys, she meets a very unhappy woman for who leads a depressing life. They share their experiences with each other, which gives us a glimpse of the unfathomable depths of human degradation.
Basanti’s father-in-law, Shankar, is a crude, evil and wealthy man. He deals in Dhatura trade and mints money. He develops a false sen
Dhature Ke Beej is a story of a young girl who dared to escape her circumstances, and became an eternal traveler. In one of her journeys, she meets a very unhappy woman for who leads a depressing life. They share their experiences with each other, which gives us a glimpse of the unfathomable depths of human degradation.
Basanti’s father-in-law, Shankar, is a crude, evil and wealthy man. He deals in Dhatura trade and mints money. He develops a false sense of invincibility and thinks nothing of abducting young girls from villages. Basanti’s spineless husband, Kailash, assists his father in his nefarious activities. Unable to change the men in her life, Shankar’s wife, Hardevi, plots to kill her husband. When a crafty Shankar sees through the scheme, Basanti gets involved. Does she manage to outwit Shankar?
जब ध्रुव का बिछड़ा दोस्त महेश उससे मिलने आता है तो उसे क्या मालूम था कि उसके साथ कुछ ऐसा घटेगा जिसकी कल्पना वह इस जन्म में तो क्या किसी जन्म में भी नहीं कर सकता था। वह अपने को एक ऐसे
जब ध्रुव का बिछड़ा दोस्त महेश उससे मिलने आता है तो उसे क्या मालूम था कि उसके साथ कुछ ऐसा घटेगा जिसकी कल्पना वह इस जन्म में तो क्या किसी जन्म में भी नहीं कर सकता था। वह अपने को एक ऐसे नये परिवेश में पाता है जहाँ उसे अपने ही घर के बारे में कुछ मालूम नहीं रहता है। आप मिलेंगे जनार्दन से जिसने जीवन का निचोड़ बोतल में खोज निकाला है, जुल्फ़ी से जो नौकर कम शायर ज्यादा है, पड़ोस की छम्मक छल्लो मल्लिका से... रुकिए रुकिए... यहाँ एक चोर भी है। और इन सब के बीच में है चंद्रा।
“लोग गायब हो जाते हैं, गुम हो जाते हैं, पर यह पहली बार है कि आदमी चोरी हो गया है।“
हँसी ठहाकों से भरपूर नाटक जिसके पात्र पाठकों को बहुत दिनों तक गुदगुदाते रहेंगे।
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