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Shrangeri Math / श्रृंगेरीमठ Jagadguru Shankaracharya/ जगद्गुरु शंकराचार्य

Author Name: Pdt. Janardan Rai Nagar | Format: Hardcover | Genre : Religion & Spirituality | Other Details

पण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा रचित ‘श्रृंगेरीमठ’ उपन्यास उनके द्वारा जगद्गुरू शंकराचार्य पर सृजित दस उपन्यासों में से एक है। इसमें शंकराचार्य की दिग्विजय का वर्णन है। शंकराचार्य एवं क्रचक्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ में क्रचक्र पराजित होता है। वह उग्र भैरव को शंकराचार्य के वध के लिए भेजता है। पद्यपाद को न जाने क्यों यह पूर्वाभास था कि क्रचक्र एवं उग्र भैरव मिलकर कुछ तो कुकृत्य करने ही वाले हैं। इसलिए वह बहुत चौकन्ना रहता है तथा आचार्य शंकर पर अपनी दृष्टि बनाए रखता है। जैसे ही उग्र भैरव ने शंकर को मारने का प्रयास किया। पद्यपाद उग्र भैरव को मारकर शंकराचार्य की रक्षा करता है। तत्पश्चात् शंकराचार्य श्रृंगेरी जाते हैं तथा मठ की स्थापना करते हैं। मार्ग में विभिन्न बौद्ध, कापालिक, नाथ, सुरी, वैष्णव आदि मध्य सम्प्रदायों के मध्य हुए शास्त्रार्थ ज्ञान का अजस्र स्रोत हैं। पाठकों के लिए अत्यधिक ज्ञानवर्धक एवं रूचिकर हैं।

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पं. जनार्दन राय नागर

पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत् तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की  उत्तरोत्तर प्रगति हुई। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है। 

शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित  दस उपन्यासों की श्रृंखला है, चार हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’  के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘उदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।

पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।

राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।

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