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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalThe author is an IRS officer of the 1993 batch. He was educated at the AMU and IIT Delhi. He has been awarded appreciation certificates from the President of India for distinguished public services and World Customs Organisation (WCO) for distinguished services in Customs Administration. He has authored eight books of Hindi Ghazals namely oat se man dikhta hai, matakia bhari nahi, sanvaad Ram aur Kanha se, misra misra ghazal ashikaana hui, ek indradhanush shatrangi, ek mangalyaan kavitaon ka, bulbule tasavvur ke and surahi me samundar.Read More...
The author is an IRS officer of the 1993 batch. He was educated at the AMU and IIT Delhi. He has been awarded appreciation certificates from the President of India for distinguished public services and World Customs Organisation (WCO) for distinguished services in Customs Administration.
He has authored eight books of Hindi Ghazals namely oat se man dikhta hai, matakia bhari nahi, sanvaad Ram aur Kanha se, misra misra ghazal ashikaana hui, ek indradhanush shatrangi, ek mangalyaan kavitaon ka, bulbule tasavvur ke and surahi me samundar.
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वो रास्ता कहीं मेरे भीतर से होगा
जहाँ सामना मेरा ईश्वर से होगा
…
दिलों के अंधेरे भी सूरज मिटाए
नहीं सिर्फ़ चेहरे ही उजले बनाए
…
हमें सफ
वो रास्ता कहीं मेरे भीतर से होगा
जहाँ सामना मेरा ईश्वर से होगा
…
दिलों के अंधेरे भी सूरज मिटाए
नहीं सिर्फ़ चेहरे ही उजले बनाए
…
हमें सफ़र में अपने साथ, जान, ले जाना
कड़ी है धूप संग सायबान ले जाना
वो रास्ता कहीं मेरे भीतर से होगा
जहाँ सामना मेरा ईश्वर से होगा
…
दिलों के अंधेरे भी सूरज मिटाए
नहीं सिर्फ़ चेहरे ही उजले बनाए
…
हम
वो रास्ता कहीं मेरे भीतर से होगा
जहाँ सामना मेरा ईश्वर से होगा
…
दिलों के अंधेरे भी सूरज मिटाए
नहीं सिर्फ़ चेहरे ही उजले बनाए
…
हमें सफ़र में अपने साथ ,जान ,ले जाना
कड़ी है धूप ,संग सायबान ले जाना
छोड़ो, क्या चाहना वफ़ा तुमसे
क़र्ज़ होते नहीं अदा तुमसे
मेरे चेहरे पे शिकन कोई नहीं
ये तो टूटा है आईना तुमसे
***
छोड़ो, क्या चाहना वफ़ा तुमसे
क़र्ज़ होते नहीं अदा तुमसे
मेरे चेहरे पे शिकन कोई नहीं
ये तो टूटा है आईना तुमसे
***
बन गया जब से साहिब-ए-मसनद
शेर हो जी-हूज़ूर जाता है
चूमता है जबीं को जब याराँ
आत्मा तक सुरूर जाता है
***
मनसबों के लिए दस्तार बिछाया ना करो
ज़मीर बेचने बाज़ार में ज़ाया ना करो
***
ढलते हुए सूरज का एहतराम किया है
जो तख़्त से उतरे, उन्हें सलाम किया है
छोड़ो, क्या चाहना वफ़ा तुमसे
क़र्ज़ होते नहीं अदा तुमसे
मेरे चेहरे पे शिकन कोई नहीं
ये तो टूटा है आईना तुमसे
***
छोड़ो, क्या चाहना वफ़ा तुमसे
क़र्ज़ होते नहीं अदा तुमसे
मेरे चेहरे पे शिकन कोई नहीं
ये तो टूटा है आईना तुमसे
***
बन गया जब से साहिब-ए-मसनद
शेर हो जी-हूज़ूर जाता है
चूमता है जबीं को जब याराँ
आत्मा तक सुरूर जाता है
***
मनसबों के लिए दस्तार बिछाया ना करो
ज़मीर बेचने बाज़ार में ज़ाया ना करो
***
ढलते हुए सूरज का एहतराम किया है
जो तख़्त से उतरे, उन्हें सलाम किया है
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों और नज़्मों के इस मेले में ग़ज़ल को ज़िन्दगी में और ज़िन्दगी को ग़ज़ल में उतारने की कोशिश की गई है। ये ग़ज़लें इंसानी ज़िन्दगी के रूहानी पहलुओं को बयाँ कर
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों और नज़्मों के इस मेले में ग़ज़ल को ज़िन्दगी में और ज़िन्दगी को ग़ज़ल में उतारने की कोशिश की गई है। ये ग़ज़लें इंसानी ज़िन्दगी के रूहानी पहलुओं को बयाँ करते हुए दस्तावेज हैं। इसमें देशभक्ति और आध्यात्मिक आयामों को भी छुआ गया हैI
बंदूक़ के शोलों ने नहीं इसको सिला है
इस मुल्क के धागे बस मोहब्बत के मिलेंगे
दुनिया का कोई सा भी चमन घूम लीजिए
खिलते गुलाब आपको भारत के मिलेंगे
***
माँ की रही, बेटे पे, बचपन में हुकूमत पर
दादी बनी तो उस पर नाती की हुकूमत है
ना तेल, ना ही उसको दिखती दियासलाई
आतिश समझ रही है बाती की हुकूमत है
तुर्बत में उतारे गए जब बादशाह सलामत
मालूम हुआ, माटी पे माटी की हुकूमत है
***
ज़िन्दगी भर समेटते ही रहे
फिर भी पूरा सामान बिखरा है
झोंपड़ी ने सहेज कर रखा
महलों में ख़ानदान बिखरा है
______
ये मोहब्बत की तेज-रौ कश्ती
जिस्म की हद से गुज़र जाएगी
ब
ज़िन्दगी भर समेटते ही रहे
फिर भी पूरा सामान बिखरा है
झोंपड़ी ने सहेज कर रखा
महलों में ख़ानदान बिखरा है
______
ये मोहब्बत की तेज-रौ कश्ती
जिस्म की हद से गुज़र जाएगी
बाँध तोड़ेगा इश्क़ का दरिया
रूह सैलाब में तर जाएगी
______
डाल से मैंने कहा चेहरा दिखाए अपना
मुझसे कहने लगी अब तो मैं कटारी में हूँ
ख़्वाब कहता है मुझे ‘फूल’ बुलाओ कह कर
मैं तो इस नींद की बगिया में हूँ , क्यारी में हूँ
ज़िन्दगी भर समेटते ही रहे
फिर भी पूरा सामान बिखरा है
झोंपड़ी ने सहेज कर रखा
महलों में ख़ानदान बिखरा है
______
ये मोहब्बत की तेज-रौ कश्ती
जिस्म की हद से गुज़र ज
ज़िन्दगी भर समेटते ही रहे
फिर भी पूरा सामान बिखरा है
झोंपड़ी ने सहेज कर रखा
महलों में ख़ानदान बिखरा है
______
ये मोहब्बत की तेज-रौ कश्ती
जिस्म की हद से गुज़र जाएगी
बाँध तोड़ेगा इश्क़ का दरिया
रूह सैलाब में तर जाएगी
______
डाल से मैंने कहा चेहरा दिखाए अपना
मुझसे कहने लगी अब तो मैं कटारी में हूँ
ख़्वाब कहता है मुझे ‘फूल ‘ बुलाओ कह कर
मैं तो इस नींद की बगिया में हूँ , क्यारी में हूँ
ग़ज़लों में हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा समावेश कर उन्हें और हिंदुस्तानी और सरल क्यों
ना बनाएँ I इस संग्रह में यही प्रयास कि या है I आज़ा दी का अमृत महोत्सव भी चल रहा
है I कु छ ग़ज
ग़ज़लों में हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा समावेश कर उन्हें और हिंदुस्तानी और सरल क्यों
ना बनाएँ I इस संग्रह में यही प्रयास कि या है I आज़ा दी का अमृत महोत्सव भी चल रहा
है I कु छ ग़ज़लें / गीत ‘हिन्द’ को समर्पित हैं I
बीज बोए हैं रोशनी के यहाँ
कल का सूरज यही से नि कलेगा
पंछियों,आसमान एक नया
हिन्द की सरजमी से निकलेगा
…………………………………………..
संदेश देवताओं का ले
जग में हरकारा जाता है
कतरा आता है भारत में
बन कर जलधारा जाता है
पृथ्वी पर भारत दि खता है
तो टूट सि तारा जाता है
…………………………………………..
अगर पत्थर भी आएँगे तो धड़कन ले के जाएँगे
यहाँ तामीर - ए - दि ल का सभी सामान बनता है
सिमट तो गई है ये दुनिया मगर बिखरे हैं सब कुनबे
कोई ये हिंद से सीखे, कै से ख़ानदान बनता है
शायरी उस हिमाक़त का नाम है जो दूसरों के दिलों में बिना इजाज़त ताक - झाँक करती है I
सफ़र दीवानगी का हो तो फिर मंज़िल नहीं ढूँढे
किसी काग़ज़ की कश्ती ने कभी साहिल नहीं ढूँढे
----<
शायरी उस हिमाक़त का नाम है जो दूसरों के दिलों में बिना इजाज़त ताक - झाँक करती है I
सफ़र दीवानगी का हो तो फिर मंज़िल नहीं ढूँढे
किसी काग़ज़ की कश्ती ने कभी साहिल नहीं ढूँढे
----
बुलबुला हूँ पर समुन्दर के निशाने पे हूँ
सच जो बोला तो शहर भर के निशाने पे हूँ
----
जहाँ से आज निकली हैं बारातें
वहीं से कल जनाज़ा जाएगा
जहाँ एक रंक को भेजा गया है
वहीं पे भेजा राजा जाएगा
----
मिट्टी के हैं बदन सभी के
सोने चाँदी के झगड़े हैं
काग़ज़ के फूलों के पीछे
काहे को पागल भँवरे हैं
शायरी उस हिमाक़त का नाम है जो दूसरों के दिलों में बिना इजाज़त ताक - झाँक करती है I
सफ़र दीवानगी का हो तो फिर मंज़िल नहीं ढूँढे
किसी काग़ज़ की कश्ती ने कभी साहिल नहीं ढूँढे
----<
शायरी उस हिमाक़त का नाम है जो दूसरों के दिलों में बिना इजाज़त ताक - झाँक करती है I
सफ़र दीवानगी का हो तो फिर मंज़िल नहीं ढूँढे
किसी काग़ज़ की कश्ती ने कभी साहिल नहीं ढूँढे
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बुलबुला हूँ पर समुन्दर के निशाने पे हूँ
सच जो बोला तो शहर भर के निशाने पे हूँ
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जहाँ से आज निकली हैं बारातें
वहीं से कल जनाज़ा जाएगा
जहाँ एक रंक को भेजा गया है
वहीं पे भेजा राजा जाएगा
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मिट्टी के हैं बदन सभी के
सोने चाँदी के झगड़े हैं
काग़ज़ के फूलों के पीछे
काहे को पागल भँवरे हैं
ग़ज़लों में हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा समावेश कर उन्हें और हिंदुस्तानी और सरल क्यों
ना बनाएँ I इस संग्रह में यही प्रयास कि या है I आज़ा दी का अमृत महोत्सव भी चल रहा
है I कु छ ग़ज
ग़ज़लों में हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा समावेश कर उन्हें और हिंदुस्तानी और सरल क्यों
ना बनाएँ I इस संग्रह में यही प्रयास कि या है I आज़ा दी का अमृत महोत्सव भी चल रहा
है I कु छ ग़ज़लें / गीत ‘हिन्द’ को समर्पित हैं I
बीज बोए हैं रोशनी के यहाँ
कल का सूरज यही से नि कलेगा
पंछियों,आसमान एक नया
हिन्द की सरजमी से निकलेगा
…………………………………………..
संदेश देवताओं का ले
जग में हरकारा जाता है
कतरा आता है भारत में
बन कर जलधारा जाता है
पृथ्वी पर भारत दीखे, नभ से
टूट सितारा जाता है
…………………………………………..
अगर पत्थर भी आएँगे तो धड़कन ले के जाएँगे
यहाँ तामीर - ए - दि ल का सभी सामान बनता है
सिमट तो गई है ये दुनिया मगर बिखरे हैं सब कुनबे
कोई ये हिंद से सीखे, कै से ख़ानदान बनता है
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों और नज़्मों के इस मेले में ग़ज़ल को ज़िन्दगी में और ज़िन्दगी को ग़ज़ल में उतारने की कोशिश की गई है। ये ग़ज़लें इंसानी ज़िन्दगी के रूहानी पहलुओं को बयाँ कर
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों और नज़्मों के इस मेले में ग़ज़ल को ज़िन्दगी में और ज़िन्दगी को ग़ज़ल में उतारने की कोशिश की गई है। ये ग़ज़लें इंसानी ज़िन्दगी के रूहानी पहलुओं को बयाँ करते हुए दस्तावेज हैं। इसमें देशभक्ति और आध्यात्मिक आयामों को भी छुआ गया हैI
बंदूक़ के शोलों ने नहीं इसको सिला है
इस मुल्क के धागे बस मोहब्बत के मिलेंगे
दुनिया का कोई सा भी चमन घूम लीजिए
खिलते गुलाब आपको भारत के मिलेंगे
***
माँ की रही, बेटे पे, बचपन में हुकूमत पर
दादी बनी तो उस पर नाती की हुकूमत है
ना तेल, ना ही उसको दिखती दियासलाई
आतिश समझ रही है बाती की हुकूमत है
तुर्बत में उतारे गए जब बादशाह सलामत
मालूम हुआ, माटी पे माटी की हुकूमत है
***
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों/नज़्मों की हर ग़ज़ल/ नज़्म जैसे तसव्वुर (कल्पना) के समुन्दर में उठने वाला एक बुलबुला है जिसकी पहचान इश्क़, विद्रोह, जंग, वेदना, आक्रोश, ख़ुदा, दिल और कायना
लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों/नज़्मों की हर ग़ज़ल/ नज़्म जैसे तसव्वुर (कल्पना) के समुन्दर में उठने वाला एक बुलबुला है जिसकी पहचान इश्क़, विद्रोह, जंग, वेदना, आक्रोश, ख़ुदा, दिल और कायनात यानी वो कुछ भी हो सकती है जिससे हम ज़िन्दगी में रुबरु होते हैं I
दौर-ए-मर्ज़ चल रहा है अभी दुनिया में
बा वजह आप तो दो गज के फ़ासले से मिले
और कितने दिनों तक कोहनियाँ मिलाएँगे
मुद्दत हो गयीं हैं आप से गले से मिले
***
तस्वीर-ए-कायनात का रखना था एक नाम
मैंने रखा ख़ुदा का ए’जाज-ए-तसव्वुर
मैं वालिद-ए-सदहा हूँ, करता हूँ परवरिश
मेरी ग़ज़ल हैं मेरी औलाद-ए-तसव्वुर
***
मानव मन एक अंतरिक्ष की तरह है, असीमित, अनंत, रहस्यमयी और रोमांचकारी किंतु एक व्यवस्था से, एक असीम सत्ता से संचालित I कविताओं का यह संग्रह उस यान की तरह है जो उस अनंत विस्तार में कदम
मानव मन एक अंतरिक्ष की तरह है, असीमित, अनंत, रहस्यमयी और रोमांचकारी किंतु एक व्यवस्था से, एक असीम सत्ता से संचालित I कविताओं का यह संग्रह उस यान की तरह है जो उस अनंत विस्तार में कदम रखने का साहस करता है I
मुझको सुन कर ये बोल गया ,
पंछी उड़ कर ये बोल गया
तुम आसमान में भी रखना
कुछ इंतज़ाम कविताओं का
………
मंगल पर जाना हो मुझको,
कविता राकेट बन जाती है
बस कुछ शब्दों के ईंधन से,
कई घंटे यान चलाती है
सौ कविताओं का ये संकलन एक इंद्रधनुष की तरह
है पर सप्तरंगी नहीं शतरंगी। इन कविताओं में प्रेम,
विद्रोह , रोष, माँ, बेटी, पिता, बेचैनी, उदासीनता,
देशभक्ति , निराशा, साँस, कली, चाँ
सौ कविताओं का ये संकलन एक इंद्रधनुष की तरह
है पर सप्तरंगी नहीं शतरंगी। इन कविताओं में प्रेम,
विद्रोह , रोष, माँ, बेटी, पिता, बेचैनी, उदासीनता,
देशभक्ति , निराशा, साँस, कली, चाँद जैसे सौ विचारों
(रंग) को एक सूत्र में पिरोया गया है।
शेर दर शेर जुड़ गए तो ग़ज़ल,
ख़ाली रास्ते पे कारवाँ हो गई
शायरी छितरी छितरी बरखा सी,
कुछ यहाँ और कुछ वहाँ हो गई
...............
इत्र काग़ज़ पे छिड़क कर गुलाब मत होना
सिर्फ़ गंगा में नहाकर सवाब मत होना
शाम आए और तेरी ढलने की मजबूरी हो
तो फिर मेरी सहर में आफ़ताब मत होना
कविताओं के इस संकलन में विभिन्न तरह के भाव व्यक्त किए गए हैं, इश्क़ यानी प्रेम को दर्शाते हुएl सिर्फ़ महबूब और महबूबा की नहीं है ये कोई मिल्कियत; ख़ुदा और बन्दे के बीच जो रिश्ता है
कविताओं के इस संकलन में विभिन्न तरह के भाव व्यक्त किए गए हैं, इश्क़ यानी प्रेम को दर्शाते हुएl सिर्फ़ महबूब और महबूबा की नहीं है ये कोई मिल्कियत; ख़ुदा और बन्दे के बीच जो रिश्ता है वो भी इश्क़ हैl इन कविताओं में इश्क़ को पूरी तरह उतारने की कोशिश हैI पढ़ने में अच्छी लगेंगी; उनको जिन्हें इश्क़ हो चुका है और उन्हें भी जिन्हें इश्क़ होना बाक़ी हैI
सूफ़ियाना ख़्यालों का शायर था मैं,
मिसरा मिसरा ग़ज़ल आशिक़ी हो गई l
इश्क़ पानी में तेरे हैं क्या खूबियाँ,
चार दिन में हरी ज़िंदगी हो गई l
पचास कविताओं का एक छोटा सा संकलन है ये। कविताओं में सभी तरह के भाव व्यक्त किए गए हैं। जो अपने मन में है या इससे जुड़ा हुआ है, उसे शब्द देने का एक प्रयास है। संकलन को और बड़ा भी रखा जा
पचास कविताओं का एक छोटा सा संकलन है ये। कविताओं में सभी तरह के भाव व्यक्त किए गए हैं। जो अपने मन में है या इससे जुड़ा हुआ है, उसे शब्द देने का एक प्रयास है। संकलन को और बड़ा भी रखा जा सकता था लेकिन उचित यही लगा की छोटा ही रखना ठीक होगा, कविता मुझे एक ऐसी विधा प्रतीत होती है जिसकी संख्या बढ़ाने का कोई बहुत लाभ नहीं है। यही बात मेरे विचार में हर पृथक कविता पर भी लागू होती है जो लिखा हो वो कम हो पर जो उसके द्वारा कहा गया हो वो ज़्यादा हो यही कविता का मंत्र है।
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