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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसहर प्रेमी’, उर्फ श्री देविंदर कुमार भल्ला, का जन्म 1933 में नारोवाल (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। 1947 के विभाजन के दौरान वे अपने परिवार के साथ भारत आ गए और अंततः हरियाणा के समालखा में बस गए। सहर प्रेमी एक प्रसिद्ध उर्दू शायर थे, जो हरिRead More...
सहर प्रेमी’, उर्फ श्री देविंदर कुमार भल्ला, का जन्म 1933 में नारोवाल (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। 1947 के विभाजन के दौरान वे अपने परिवार के साथ भारत आ गए और अंततः हरियाणा के समालखा में बस गए।
सहर प्रेमी एक प्रसिद्ध उर्दू शायर थे, जो हरियाणा के साहित्यिक हलकों में प्रमुखता से उभरे। हरियाणा उर्दू एकादमी द्वारा सम्मानित, वे 1970 से 2000 के दशक तक, कई मुशायरों में मुख्य अतिथि रहे। 1987 में, उन्होंने अपना प्रशंसित पहला संग्रह, 'सहर-ए-सुखन', उर्दू में प्रकाशित किया।
अपनी साहित्यिक उपलब्धियों से परे, सहर प्रेमी अपने समाज के एक सम्मानित सदस्य, समर्पित समाज सेवी और उभरते हुए शायरों के लिए एक प्रेरणा स्रोत थे।
सहर प्रेमी की बेटी नीना कश्यप ने उनकी चुनिंदा ग़ज़लों और शे’रो का कुशलतापूर्वक हिंदी में रूपांतरण किया है, जिसका परिणाम यह पुस्तक है। सहर प्रेमी के नाती, नादिर उर्फ लोकेश कश्यप ने अपनी कविताओं और शे’रो की एक श्रृंखला के साथ इस असाधारण पारिवारिक विरासत का एक उपयुक्त समापन किया है।
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Achievements
ना हंस कर दिल बहलता है ना रोना काम आता है,
राह-ए-उल्फत में ऐसा मरहला हर गाम आता है।
ख़ताएँ-ए-ग़ैर का चर्चा मैं हरगिज़ कर नहीं सकता,
बला से मुझ पे आने दो अगर इल्ज़ाम आता है।।
जब
ना हंस कर दिल बहलता है ना रोना काम आता है,
राह-ए-उल्फत में ऐसा मरहला हर गाम आता है।
ख़ताएँ-ए-ग़ैर का चर्चा मैं हरगिज़ कर नहीं सकता,
बला से मुझ पे आने दो अगर इल्ज़ाम आता है।।
जब उर्दू शायरी की आत्मा हिन्दी साहित्य से मिलती है तो क्या होता है?
उर्दू जगत के महान शायर, ‘सहर प्रेमी’ (श्री देविंदर कुमार भल्ला) द्वारा रचित ग़ज़लों, नज़्मों, रुबाइओं, कित’आत और शेरों के अंतहीन सागर में डूबने को तैयार रहें। इन रचनाओं का जन्म लगभग पाँच दशक पहले हुआ और 1987 में पहली बार उर्दू में प्रकाशित हुई थीं।
सहर प्रेमी के शब्द, क़ीमती रत्नों की तरह, भावनाओं और ज्ञान से जगमगाते हुए, प्रेम, विरह, ईश्वर, अस्तित्ववाद और देशभक्ति की गहराइयों में एक अनोखे नज़रिए से उतरते हैं। उनकी रचनाएँ इक ऐसी दुनिया बनाती हैं जिसे किसी भी अन्य उर्दू शायर ने इस प्रकार नहीं खोजा है।
उनकी शायरी को, उनकी बेटी, ‘नीना कश्यप’ ने बहुत ही प्रबलता और निष्ठा से हिन्दी में रूपांतरित किया है। यह संग्रह, सहर प्रेमी के नाती, ‘नादिर’ (लोकेश कश्यप) द्वारा लिखित कविताओं और शे’रो के एक लुभावने समापन के साथ समाप्त होता है, जो एक असाधारण पारिवारिक विरासत को पूरा करता है।
आइये! इस तीन पीढ़ियों की सम्मलित रचना में खो जायें।
ना हंस कर दिल बहलता है ना रोना काम आता है,
राह-ए-उल्फत में ऐसा मरहला हर गाम आता है।
ख़ताएँ-ए-ग़ैर का चर्चा मैं हरगिज़ कर नहीं सकता,
बला से मुझ पे आने दो अगर इल्ज़ाम आता है।।
जब
ना हंस कर दिल बहलता है ना रोना काम आता है,
राह-ए-उल्फत में ऐसा मरहला हर गाम आता है।
ख़ताएँ-ए-ग़ैर का चर्चा मैं हरगिज़ कर नहीं सकता,
बला से मुझ पे आने दो अगर इल्ज़ाम आता है।।
जब उर्दू शायरी की आत्मा हिन्दी साहित्य से मिलती है तो क्या होता है?
उर्दू जगत के महान शायर, ‘सहर प्रेमी’ (श्री देविंदर कुमार भल्ला) द्वारा रचित ग़ज़लों, नज़्मों, रुबाइओं, कित’आत और शेरों के अंतहीन सागर में डूबने को तैयार रहें। इन रचनाओं का जन्म लगभग पाँच दशक पहले हुआ और 1987 में पहली बार उर्दू में प्रकाशित हुई थीं।
सहर प्रेमी के शब्द, क़ीमती रत्नों की तरह, भावनाओं और ज्ञान से जगमगाते हुए, प्रेम, विरह, ईश्वर, अस्तित्ववाद और देशभक्ति की गहराइयों में एक अनोखे नज़रिए से उतरते हैं। उनकी रचनाएँ इक ऐसी दुनिया बनाती हैं जिसे किसी भी अन्य उर्दू शायर ने इस प्रकार नहीं खोजा है।
उनकी शायरी को, उनकी बेटी, ‘नीना कश्यप’ ने बहुत ही प्रबलता और निष्ठा से हिन्दी में रूपांतरित किया है। यह संग्रह, सहर प्रेमी के नाती, ‘नादिर’ (लोकेश कश्यप) द्वारा लिखित कविताओं और शे’रो के एक लुभावने समापन के साथ समाप्त होता है, जो एक असाधारण पारिवारिक विरासत को पूरा करता है।
आइये! इस तीन पीढ़ियों की सम्मलित रचना में खो जायें।
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