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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआदरणीया श्रीमती रूपा दास अपनी अद्भुत साहित्यिक छटा विखेर रही हैं। सत्तर वर्ष की उम्र में इन्हंने अचानक से साहित्यिक क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाली है। बड़ा अफसोस होता है साहित्यिकार के रूप में इनकी पहिचान कुछ समय पहले से ही हRead More...
आदरणीया श्रीमती रूपा दास अपनी अद्भुत साहित्यिक छटा विखेर रही हैं। सत्तर वर्ष की उम्र में इन्हंने अचानक से साहित्यिक क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाली है। बड़ा अफसोस होता है साहित्यिकार के रूप में इनकी पहिचान कुछ समय पहले से ही हो पाता। निहार जी का ऐसा कहना,--- “अचानक से कुछ महीनों के अंतराल में ही एक के बाद एक पुस्तकों का हम सबों के समक्ष आना, यह महजजि संयोग नहीं हो सकता' एकदम से राम चरित मानस जैसे ग्रंथों का हू ब हू अनुवाद*...... | कर “अंगिका राम चरित मानस” सबों के समक्ष एक महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत कर इन्होंने लोगों को भौंचक कर दिया, फिर कुछ ही महीनों के बाद “नरायणम्”, और अब यह “एक मुट्ठी शब्द”। सारा साहित्य समाज इनकी सोच की इस ऊर्जा से आश्चर्यचकित है। इन्होंने इतने दिनों तक क्यों खुद को हम सबों से छुपा रखा था। हलांकि इस संकलन में प्रकाशित कहानियों की रचना तिथि यहाँ अंकित हैं, इसमें अस्सी बेरासी की लिखी हुई कहानियाँ भी संलग्न हैं, ये कहानियाँ तत्कालीन समाज के आईना के रूप में प्रतिबिंबित हैं, इससे पता चलता है कि इनका साहित्य से जुड़ाव बहुत पुराना है। इनके विषय में अब यह भी पता चलता है कि इन्हींने अपनी दस वर्ष की उम्र में ही सर्वप्रथम स्चना “पगला रमेश” नामक कहानी लिखा था, जिसका शीर्षक और विषय वस्तु तो इन्हें आज भी याद है, जिसे पढ़ कर सुन कर इनकी माँ ने पिता से कहा था, देखिए न इसने ये कहानी लिखी है, इनके पिता ने उस कहानी कोपढ़ कर कहा था-*लिखा तो इसने अच्छा है, परंतु पढ़ने लिखने की अवस्था में ऐसी रुचि उचित नहीं”
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यह संकलन मानवीय सोच से प्रस्फुटित एक सुंदर साहित्य वाटिका है, जिसमें जीवन के बहुरंगी पुष्प मुस्का रहे हैं। कोई पुष्प मानवीय चेतना की खुशबू लिए महक रहा है तो कोई समाज के बहुरंगी आ
यह संकलन मानवीय सोच से प्रस्फुटित एक सुंदर साहित्य वाटिका है, जिसमें जीवन के बहुरंगी पुष्प मुस्का रहे हैं। कोई पुष्प मानवीय चेतना की खुशबू लिए महक रहा है तो कोई समाज के बहुरंगी आयामों की झलक लिए किसी भाव की लता से लिपटा लहरा रहा है। या कहें यह एक ईश्वर के बनाए इस मानवीय उपवन में नाना सौन्दर्य सुवास सुकुमारिता की झलक दिखने में पूर्ण सक्षम है, तो कहीं कंटीली झाड़ी जीवन की यथार्थता बयान करती है। कहीं सुकुमार गुलाब संग काँटों की चुमन तो कहीं चाँदनी रात की छटा दृष्टिगत होती है। कहीं पर कोयल की मधुर आवाज तो कहीं कंकड़ पत्थर पूर्ण कठोर राह भी यहाँ मिलता है। देशभक्ति, छायावाद,यथार्थवाद,समाजवाद हर् दिशा की झलक यहाँ बखूबी दिखती है। यह “एक मुट्ठी शब्द” साहित्यिक उद्यान में बिखेर दिया गया है, शायद कोई साहित्य प्रेमी पक्षी इसे चुग अपनी क्षुधा तृप्त कर पाए। इसमे एक साथ हिन्दी की विभिन्न क्षेत्रों की कविता, गाँव को उजागर करती अंगिका कविता, और कुछेक कहानियाँ जहां जीवन की प्रत्येक अवस्था को समेट पाना संभव हो पाया है।
इस पुस्तक की रचना राम कथा, और भागवत पुराण की कथा, को पद्य वद्ध करते हुए यथार्थ ज्ञान बच्चों तक पहुँचने के उद्येश्य से किया गया है। राम या कृष्ण के अनेकों चरित्र रामायण या भागवत पुर
इस पुस्तक की रचना राम कथा, और भागवत पुराण की कथा, को पद्य वद्ध करते हुए यथार्थ ज्ञान बच्चों तक पहुँचने के उद्येश्य से किया गया है। राम या कृष्ण के अनेकों चरित्र रामायण या भागवत पुराण में वर्णित हैं, जिसे कविता रूप में पढ़ कर बच्चे सरलता से इन चरित्रों को समझ सकें गे साथ ही ईश्वर की वास्तविकता को भी हृदयासात कर पाएंगे, तब जीवन जीने का नजरिया बदल जाएगा--- “अनल जैसे हों काष्ठ में प्रभु तेरे हृदय में’’। यह एक अखंड धार्मि कता की भावना है जो बच्चों में नींव रूप में पाठ्यक्रम के माध्यम से डालना चाहिए। रचनाकार भी (Real devinity) विश्व व्यापक धर्म में ही विश्वा स रखती हैं। परंतु जिन्हें जो धर्म संस्कार जन्म रूप में मि ला हो उसका सम्मान करते हुए सबको एक समझना चाहिए। जैसे सबों के अलग अलग माता पि ता होने पर भी सभी संतान और अभि भावक का एक समान ही उत्तरदायित्व होता है, उसी प्रकार हम सब अलग अलग प्रभु की माया को स्वीकारते हुए भी एक ही अमर्त्य की ओर प्रेरित होते हैं।
इस अभूतपूर्व अनुवाद और ब्याख्या “अंगिका रामचरित मानस” में सनातन-धर्म का स्तंम्भ,विश्वब्यापी विशाल ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘’रामचरित मानस को आधार स्वरूप प्रस्तुत किया
इस अभूतपूर्व अनुवाद और ब्याख्या “अंगिका रामचरित मानस” में सनातन-धर्म का स्तंम्भ,विश्वब्यापी विशाल ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘’रामचरित मानस को आधार स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। यह “अंगिका रामचरित मानस” भारतीय संस्कृति, आचार-विचार, सभ्यता का एक सुंदर धरोहर है । तुलसी “रामचरित मानस” का यह अनुवाद है, भक्ति ज्ञान और कर्म का समन्वय है । साथ ही इसमें रचयिता ने अपना ब्यक्तिगत विचार भी प्रस्तुत किया है— ढोल, गंवार, शूद्र पशु, नारी “ जैसे कुछ विवादित विषय का बिल्कुल सही सटीक अर्थ भी प्रस्तुत किया है । यह मानस जन-मानस को धर्म और सांसारिक-कर्म से जोड़ने की अद्भुत कड़ी है । यह सहज जीवन से लेकर कठिन त्याग का अपूर्व संगम है । इसके अंतर्गत तुलसीदासजी के विचारों को अंगिका भाषा में प्रस्तुत करते हुए, उनके सारे आयामों को यथावत रखते हुए , पाठ की लयबद्धता, पाठ के दौरान के विश्राम, सबको यथावत रखा गया है। रचयिता का अंगिका साहित्य में यह विशाल ग्रंथ तुलसीदास के मानस के आधार पर हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास है ,जो निश्चय ही अंगिका साहित्य को भी समृद्ध बनाने में पुर्ण सक्षम होगा । यह हर घर, जन-जन के लिए वंदनीय है,पूजनीय है, ग्राह्य है ।
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