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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
जब मैंने "गुनहगार" लिखने की शुरुआत की, तो मेरा उद्देश्य केवल कहानियाँ लिखना नहीं था, बल्कि उन मुद्दों को सामने लाना था जिन पर अक्सर हमारी नज़र नहीं जाती। समाज में कुछ ऐसी समस्याएँ
जब मैंने "गुनहगार" लिखने की शुरुआत की, तो मेरा उद्देश्य केवल कहानियाँ लिखना नहीं था, बल्कि उन मुद्दों को सामने लाना था जिन पर अक्सर हमारी नज़र नहीं जाती। समाज में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो हर किसी की ज़िन्दगी को प्रभावित करती हैं, लेकिन उनके बारे में बात करने से हम अक्सर कतराते हैं। चाहे वह बेरोज़गारी और शिक्षा प्रणाली की कमियाँ हों, या फिर जातिगत भेदभाव और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयाँ—इन सभी विषयों पर खुलकर बातचीत होना बेहद ज़रूरी है।
"गुनहगार" नाम इसलिए चुना क्योंकि हर कहानी के पात्र समाज के नियमों और धारणाओं के विरुद्ध खड़े होते हैं। वे ऐसे "गुनहगार" हैं जो कुछ गलत नहीं, बल्कि सही करने की कोशिश में हैं। उनके संघर्ष, उनकी पीड़ाएँ, और उनका साहस इस किताब का मूल है।
इस पुस्तक में विभिन्न कहानियाँ हैं, जिनमें से हर एक समाज के एक अलग पहलू को उजागर करती है। बदलाव, कर्तव्य, विडंबना जैसी कहानियाँ दिखाती हैं कि कैसे एक व्यक्ति की सोच और उसके कर्म समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। मेरा विश्वास है कि एक अकेला व्यक्ति भी बदलाव की शुरुआत कर सकता है, अगर उसमें इच्छाशक्ति हो।
यह किताब न सिर्फ उन लोगों के लिए है जो अपने संघर्षों में अकेले महसूस करते हैं, बल्कि उनके लिए भी है जो समाज को एक नई दिशा देना चाहते हैं। "गुनहगार" के हर पात्र में एक साधारण इंसान है, जो असाधारण बनने की हिम्मत करता है। मुझे आशा है कि यह किताब पाठकों को सोचने, समझने और समाज की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनने की प्रेरणा देगी।
किताब लिखते समय मेरी कोशिश यही थी कि पाठकों के मन में सवाल उठें, वे सोचें और शायद उन सवालों के जवाब खोजने के लिए आगे कदम भी उठाएँ।
जब मैंने "गुनहगार" लिखने की शुरुआत की, तो मेरा उद्देश्य केवल कहानियाँ लिखना नहीं था, बल्कि उन मुद्दों को सामने लाना था जिन पर अक्सर हमारी नज़र नहीं जाती। समाज में कुछ ऐसी समस्याएँ
जब मैंने "गुनहगार" लिखने की शुरुआत की, तो मेरा उद्देश्य केवल कहानियाँ लिखना नहीं था, बल्कि उन मुद्दों को सामने लाना था जिन पर अक्सर हमारी नज़र नहीं जाती। समाज में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो हर किसी की ज़िन्दगी को प्रभावित करती हैं, लेकिन उनके बारे में बात करने से हम अक्सर कतराते हैं। चाहे वह बेरोज़गारी और शिक्षा प्रणाली की कमियाँ हों, या फिर जातिगत भेदभाव और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयाँ—इन सभी विषयों पर खुलकर बातचीत होना बेहद ज़रूरी है।
"गुनहगार" नाम इसलिए चुना क्योंकि हर कहानी के पात्र समाज के नियमों और धारणाओं के विरुद्ध खड़े होते हैं। वे ऐसे "गुनहगार" हैं जो कुछ गलत नहीं, बल्कि सही करने की कोशिश में हैं। उनके संघर्ष, उनकी पीड़ाएँ, और उनका साहस इस किताब का मूल है।
इस पुस्तक में विभिन्न कहानियाँ हैं, जिनमें से हर एक समाज के एक अलग पहलू को उजागर करती है। बदलाव, कर्तव्य, विडंबना जैसी कहानियाँ दिखाती हैं कि कैसे एक व्यक्ति की सोच और उसके कर्म समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। मेरा विश्वास है कि एक अकेला व्यक्ति भी बदलाव की शुरुआत कर सकता है, अगर उसमें इच्छाशक्ति हो।
यह किताब न सिर्फ उन लोगों के लिए है जो अपने संघर्षों में अकेले महसूस करते हैं, बल्कि उनके लिए भी है जो समाज को एक नई दिशा देना चाहते हैं। "गुनहगार" के हर पात्र में एक साधारण इंसान है, जो असाधारण बनने की हिम्मत करता है। मुझे आशा है कि यह किताब पाठकों को सोचने, समझने और समाज की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनने की प्रेरणा देगी।
किताब लिखते समय मेरी कोशिश यही थी कि पाठकों के मन में सवाल उठें, वे सोचें और शायद उन सवालों के जवाब खोजने के लिए आगे कदम भी उठाएँ।
यह कविताएं पूरी तरह मेरे द्वारा रचित हैं और संग्रहित की गई हैं । इसमें मैंने शब्दों को बुनकर एक सामान्य जीवन के साथ होने वाले कई जज्बातों को रखा है।
एक सामान्य शख्स वह अपनी त
यह कविताएं पूरी तरह मेरे द्वारा रचित हैं और संग्रहित की गई हैं । इसमें मैंने शब्दों को बुनकर एक सामान्य जीवन के साथ होने वाले कई जज्बातों को रखा है।
एक सामान्य शख्स वह अपनी ताउम्र जिंदगी के कई रंगों में रंगा जाता है ,वह कभी गिरता है तो कभी संभलता है ,प्रेम करता है, अबसादित रहता है, हारता है ,जीतता है साथ ही इसके समानांतर में कई औरों के सुख दुख देखकर सुख या दुख महसूस करता है ।।
जैसा कि आप जानते हैं एक कविता कई जगहों पर कई जज्बातों को लेकर सटीक बैठती है बस आपको गहनता से पढ़ना होता है||
वो रात में ताउम्र नहीं भूल पाया |वह जनवरी की बड़ी कड़ाके की ठंड थी उस दिन मेरा परीक्षा परिणाम आया था ,हर बार कि जैसे म Read More...
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