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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमेरी अकादमिक पृष्ठभूमि कुछ लोगों के लिए मेरे कार्य को विश्वसनीय बना सकती है। मेरी आयु मेरी परिपक्वता या अपरिपक्वता की माप बन सकती है। लेकिन यह पुस्तक तब ही अपनी सही आलोचना को प्राप्त कर सकेगी जब इसको एक साधारण व्यक्ति द्वारा लिखRead More...
मेरी अकादमिक पृष्ठभूमि कुछ लोगों के लिए मेरे कार्य को विश्वसनीय बना सकती है। मेरी आयु मेरी परिपक्वता या अपरिपक्वता की माप बन सकती है। लेकिन यह पुस्तक तब ही अपनी सही आलोचना को प्राप्त कर सकेगी जब इसको एक साधारण व्यक्ति द्वारा लिखी गई एक पुस्तक माना जाए और प्रत्येक पाठक इस पुस्तक की आलोचना का पात्र माना जाए। पुस्तक लिखना मेरा कार्य था, जो मैं कर चुका हूँ। यह पुस्तक आपके हाथ में है और इस पुस्तक की आलोचना भी, जो आपका कार्य है।
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1947 में भारत स्वतंत्र हुआ था। यह पहली मुक्ति थी, राजनैतिक मुक्ति, मुक्ति 1.0। 1950 में डॉक्टर अंबेडकर और बी. एन. राव के नेतृत्व में भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ, यह मुक्ति 1.0 की अंतिम अ
1947 में भारत स्वतंत्र हुआ था। यह पहली मुक्ति थी, राजनैतिक मुक्ति, मुक्ति 1.0। 1950 में डॉक्टर अंबेडकर और बी. एन. राव के नेतृत्व में भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ, यह मुक्ति 1.0 की अंतिम अभिव्यक्ति थी।
1990 के दशक में एक और मुक्ति का आह्वान हुआ। यह आह्वान हालांकि बहुत संकटपूर्ण स्थिति में हुआ था जिसकी चर्चा यहां करना आवश्यक नहीं, किंतु यह जरूरी था। राव- मनमोहन मॉडल ने भारत को दूसरी मुक्ति देने का कार्य किया, आर्थिक मुक्ति, मुक्ति 2.0। पी. वी. नरसिम्हा राव जी के प्रधानमंत्री काल में श्री मनमोहन सिंह की दूरदृष्टिता ने भारत की अर्थव्यवस्था को सरकारी चंगुल, लाइसेंस- कोटा- परमिट राज से आजादी दिलाई।
मुक्ति 3.0 का अर्थ होगा शिक्षा व्यवस्था का सरकारी नियंत्रण से मुक्त होना तथा जनमानस के हाथ में एक और सामाजिक शक्ति का वापस लौटना जो औपनिवेशिक काल में समाज से छीनकर औपनिवेशिक सत्ता द्वारा अपने हाथों में संचित कर ली गई थी। इस तीसरी मुक्ति की दिशा में एक प्रयास है यह पुस्तक:- मुक्ति 3.0।
भारतीय राष्ट्र की तीन महत्वपूर्ण संकल्पना वर्ष 1909 में तीन व्यक्तियों के वाक् में दिखती हैं। ये तीन व्यक्ति तीन ऐसे महान लोग थे जिनमें एक को अल्लामा कहा गया, दूसरे को महात्मा और
भारतीय राष्ट्र की तीन महत्वपूर्ण संकल्पना वर्ष 1909 में तीन व्यक्तियों के वाक् में दिखती हैं। ये तीन व्यक्ति तीन ऐसे महान लोग थे जिनमें एक को अल्लामा कहा गया, दूसरे को महात्मा और तीसरे को महर्षि। अल्लामा इकबाल ने उसी वर्ष अपना सर्वाधिक मशहूर "शिकवा" लिखा। इसी वर्ष महात्मा गांधी ने अपनी विचारधारा के प्रतिनिधि के रूप में "हिंद स्वराज" का प्रथम संस्करण प्रकाशित किया। इसी वर्ष अलीपुर बम धमाके से मुक्त होने बाद महर्षि अरबिंद घोष ने अपना प्रसिद्ध "उत्तरपाड़ा आख्यान" दिया था। ये तीन महान वाक् अभिव्यक्तियां राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रवाद की परिभाषा को उच्चारित करती हैं। इन तीनों ही विचार में जो एक चीज समान है वो इनका वैश्विक दृष्टिकोण है। तीनों ही विचारधारा राष्ट्र की परिधि को विकासशील मानते हुए पूरी दुनिया को अपनी राष्ट्रवाद की परिभाषा में समेटने का दृष्टिकोण रखती हैं। किंतु तीनों की दिशा अलग अलग है, तीनों के विस्तार का तरीका अलग है, इसलिए तीनों अलग हैं।
अपने एक वर्ष के कारावास के दौरान अरबिन्द लंबे समय तक एकांतवास में रहते हैं। इसी दौरान उनको आत्मसाक्षात्कार होता है और वह योग साधना के उच्च स्तर पर पहुँचते हैं। 1909 में जेल से बा
अपने एक वर्ष के कारावास के दौरान अरबिन्द लंबे समय तक एकांतवास में रहते हैं। इसी दौरान उनको आत्मसाक्षात्कार होता है और वह योग साधना के उच्च स्तर पर पहुँचते हैं। 1909 में जेल से बाहर आने के पश्चात वह राजनैतिक सक्रियता त्याग देते हैं और नया उद्देश्य धारण करते हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्रवाद के जागरण को एक दूसरे का पर्याय घोषित करते हैं। जेल से बाहर आने के पश्चात उत्तरपाड़ा में अरबिन्द ने ऐतिहासिक महत्व का अपना पहला सार्वजनिक आख्यान दिया जो उत्तरपाड़ा आख्यान के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हो गया।
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and p
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and purposeless society of India so that every person who believes in Indian culture can work for the future of India by putting some purpose in their consciousness. Therefore, the place of this book is not in the library of any big historian or intellectual. Its place is in the hands of common people of India. I cannot reach this book to everyone who believes in the culture of India, so the readers will have to take the responsibility to reach its message to every person in India.
कामायनी हिंदी भाषा का आधुनिक छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। 'प्रसाद' जी की यह अंतिम काव्य रचना 1936 ई. में प्रकाशित हुई, परंतु इसका प्रणयन प्राय: 7-8 वर्ष पू
कामायनी हिंदी भाषा का आधुनिक छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। 'प्रसाद' जी की यह अंतिम काव्य रचना 1936 ई. में प्रकाशित हुई, परंतु इसका प्रणयन प्राय: 7-8 वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो गया था। 'चिंता' से प्रारंभ कर 'आनंद' तक 15 सर्गों के इस महाकाव्य में मानव मन की विविध अंतर्वृत्तियों का क्रमिक उन्मीलन इस कौशल से किया गया है कि मानव सृष्टि के आदि से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है। कला की दृष्टि से कामायनी छायावादी काव्यकला का सर्वोत्तम प्रतीक माना जा सकता है। चित्तवृत्तियों का कथानक के पात्र के रूप में अवतरण इस काव्य की अन्यतम विशेषता है। और इस दृष्टि से लज्जा, सौंदर्य, श्रद्धा और इड़ा का मानव रूप में अवतरण हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है। कामायनी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है। साथ ही इस पर अरविन्द दर्शन और गांधी दर्शन का भी प्रभाव यत्र तत्र मिल जाता है।
20 के दशक के पूर्वार्ध में भी कुछ महाकाव्य लिखे गए किंतु जयशंकर प्रसाद के 'कामायनी' तक आते आते परम्परा ने दम तोड दिया। उपन्यास ने महाकाव्य का लगभग सबकुछ छीन लिया किंतु भाव पक्ष अ
20 के दशक के पूर्वार्ध में भी कुछ महाकाव्य लिखे गए किंतु जयशंकर प्रसाद के 'कामायनी' तक आते आते परम्परा ने दम तोड दिया। उपन्यास ने महाकाव्य का लगभग सबकुछ छीन लिया किंतु भाव पक्ष अभी भी बचा था जिसको समेट कर महाप्राण ने एक नई काव्यविधा का अविष्कार किया जिसमें महाकाव्य का संपूर्ण भाव था किंतु विस्तार सीमित था। अब भाव का वैविध्य और संपूर्णता कम हुई किंतु उसकी प्रखरता और गहनता बढ़ गई जिस गहनता को उपन्यास कभी नहीं पा सकता था। इसी भाव प्रवणता में महाप्राण निराला ने कई लंबी कविताएं लिखीं जो आज भी साहित्य के कीर्तिमान हैं।
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
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This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and purposeless society of India so that every person who believes in Indian culture can work for the future of India by putting some purpose in their consciousness. Therefore, the place of this book is not in the library of any big historian or intellectual. Its place is in the hands of common people of India. I cannot reach this book to everyone who believes in the culture of India, so the readers will have to take the responsibility to reach its message to every person in India.
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
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This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and purposeless society of India so that every person who believes in Indian culture can work for the future of India by putting some purpose in their consciousness. Therefore, the place of this book is not in the library of any big historian or intellectual. Its place is in the hands of common people of India. I cannot reach this book to everyone who believes in the culture of India, so the readers will have to take the responsibility to reach its message to every person in India.
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and purposeless socie
This book contains the history of India, it contains the facts of the present, it imagines the future of India and there are many visions to see all of them. Even after calling the book a story literature, this book will certainly appear in the original discussion on many topics and presenting new principles, some new fabricated words may also appear, but it is clear in its purpose.
This book has been written for the directionless and purposeless society of India so that every person who believes in Indian culture can work for the future of India by putting some purpose in their consciousness. Therefore, the place of this book is not in the library of any big historian or intellectual. Its place is in the hands of common people of India. I cannot reach this book to everyone who believes in the culture of India, so the readers will have to take the responsibility to reach its message to every person in India.
भगत सिंह ने जेल में रहते हुए यह लेख लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “द पीपल“ में प्रकाशित हुआ। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल
भगत सिंह ने जेल में रहते हुए यह लेख लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “द पीपल“ में प्रकाशित हुआ। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की कालकोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में ही भगतसिंह ने यह लेख लिखा।
जिनको नागफनी में केवल काँटे नहीं दिखते हैं, जिनको सफेद रंग में केवल विश्वास नहीं दिखता, जो रक्त को केवल नरसंहार नहीं कह्ते, जो नागफनी के जंगल के परे भी सत्य को देखने की दॄष्टि रखते
जिनको नागफनी में केवल काँटे नहीं दिखते हैं, जिनको सफेद रंग में केवल विश्वास नहीं दिखता, जो रक्त को केवल नरसंहार नहीं कह्ते, जो नागफनी के जंगल के परे भी सत्य को देखने की दॄष्टि रखते हैं। ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के संघर्ष और संघर्ष के महत्व को समर्पित करता हूँ यह पुस्तक- नागफनी।
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है। हिंदुफोबिया पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस्त
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है। हिंदुफोबिया पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस्तक को शृंखला के रूप में लाने को लेकर था। 'हिंदुफोबिया' पुस्तक अब शृंखला के रूप में प्रस्तुत है। पहली पुस्तक 'इस्लामोफोबिया' हिंदुफोबिया के सबसे बड़े शस्त्र के रूप में प्रयुक्त इस्लामिक विक्टीमहुड को समझने और वास्तविक इस्लामिक साम्राज्यवाद को समझने का प्रयास करती है। दूसरी पुस्तक 'एक पक्षीय युद्ध' हिंदुफोबिया के अन्य अस्त्रों को समझने का प्रयास करती है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक सांस्कृतिक युद्ध में भारतीय पक्ष के समक्ष समस्याओं और आवश्यकताओं को समझती है। तीसरी पुस्तक 'स्वर्णिम भष्मबीज' इन सभी चुनौतियों क़े समाधान और भारतीय चित्त की मूल प्रवृत्ति को वर्णित करती है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास को इसी दॄष्टि से देखने का प्रयास करती है और भारतीयता को प्राप्त करने का एक संभावित मार्ग सुझाती है।
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है। हिंदुफोबिया पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है। हिंदुफोबिया पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस्तक को शृंखला के रूप में लाने को लेकर था। 'हिंदुफोबिया' पुस्तक अब शृंखला के रूप में प्रस्तुत है। पहली पुस्तक 'इस्लामोफोबिया' हिंदुफोबिया के सबसे बड़े शस्त्र के रूप में प्रयुक्त इस्लामिक विक्टीमहुड को समझने और वास्तविक इस्लामिक साम्राज्यवाद को समझने का प्रयास करती है। दूसरी पुस्तक 'एक पक्षीय युद्ध' हिंदुफोबिया के अन्य अस्त्रों को समझने का प्रयास करती है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक सांस्कृतिक युद्ध में भारतीय पक्ष के समक्ष समस्याओं और आवश्यकताओं को समझती है। तीसरी पुस्तक 'स्वर्णिम भष्मबीज' इन सभी चुनौतियों क़े समाधान और भारतीय चित्त की मूल प्रवृत्ति को वर्णित करती है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास को इसी दॄष्टि से देखने का प्रयास करती है और भारतीयता को प्राप्त करने का एक संभावित मार्ग सुझाती है।
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस्तक को शृंखला के
यदि आप तक 'हिंदुफोबिया' पुस्तक पहुंच चुकी है तो यह पुस्तक आपके लिये नहीं है। यदि नहीं, तो यह शृंखला एक शुरुआत हो सकती है पुस्तक की लंबाई को देखते हुए एक सुझाव पुस्तक को शृंखला के रूप में लाने को लेकर था। 'हिंदुफोबिया' पुस्तक अब शृंखला के रूप में प्रस्तुत है। पहली पुस्तक 'इस्लामोफोबिया' हिंदुफोबिया के सबसे बड़े शस्त्र के रूप में प्रयुक्त इस्लामिक विक्टीमहुड को समझने और वास्तविक इस्लामिक साम्राज्यवाद को समझने का प्रयास करती है। दूसरी पुस्तक 'एक पक्षीय युद्ध' हिंदुफोबिया के अन्य अस्त्रों को समझने का प्रयास करती है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक सांस्कृतिक युद्ध में भारतीय पक्ष के समक्ष समस्याओं और आवश्यकताओं को समझती है। तीसरी पुस्तक 'स्वर्णिम भष्मबीज' इन सभी चुनौतियों क़े समाधान और भारतीय चित्त की मूल प्रवृत्ति को वर्णित करती है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास को इसी दॄष्टि से देखने का प्रयास करती है और भारतीयता को प्राप्त करने का एक संभावित मार्ग सुझाती है
इस पुस्तक में भारत का इतिहास सम्मिलित है, इसमें वर्तमान के तथ्य भरे हुए हैं, इसमें भविष्य के भारत की कल्पना है और इन सभी को देखने की कई दृष्टि भी हैं। पुस्तक को कहानी साहित्य क
इस पुस्तक में भारत का इतिहास सम्मिलित है, इसमें वर्तमान के तथ्य भरे हुए हैं, इसमें भविष्य के भारत की कल्पना है और इन सभी को देखने की कई दृष्टि भी हैं। पुस्तक को कहानी साहित्य कहने के पश्चात भी यह पुस्तक कई विषयों पर मौलिक चर्चा करती हुई तथा नए सिद्धांत प्रस्तुत करती हुई अवश्य दिखाई देगी, कुछ नए गढ़े हुए शब्द भी दिख सकते हैं लेकिन यह अपने उद्देश्य में स्पष्ट है।
यह पुस्तक भारत के दिशा हीन और उद्देश्य हीन समाज के लिए लिखी गई है ताकि भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति भारत के भविष्य के लिए अपनी चेतना में कुछ उद्देश्य रखकर कार्य कर सके। इसलिए इस पुस्तक का स्थान किसी बहुत बड़े इतिहासकार या बुद्धिजीवी के पुस्तकालय में नहीं है। इसका स्थान भारत के सामान्य जन के हाथों में है। मैं इस पुस्तक को भारत की संस्कृति में विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति तक नहीं पहुंचा सकता हूं इसलिए इसके संदेश को भारत के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचने का दायित्व भी पाठकों को लेना होगा।
यह पुस्तक लोकतंत्र की खोज संसद भवन या नेताओं की रैली में नहीं करती है। यह पुस्तक लोकतन्त्र की खोज करती है चाय की चर्चाओं में, रेल के डिब्बों में, शयनकक्ष में, परिवार के निर्णयों
यह पुस्तक लोकतंत्र की खोज संसद भवन या नेताओं की रैली में नहीं करती है। यह पुस्तक लोकतन्त्र की खोज करती है चाय की चर्चाओं में, रेल के डिब्बों में, शयनकक्ष में, परिवार के निर्णयों में, प्रेमियों की चर्चाओं में, प्र्कृती के साथ सम्बन्धों में, ईश्वर की भक्ति में और जिहाद के नारों के बीच में। यह पुस्तक लोकतन्त्र को राजनीतिक आले से निकालकर धरातल पर बिछाने का प्रयास करती है।
कोई कहे की प्रेम नहीं छिछोरापन है, कोई कहे प्रेम नहीं वासना है, कोई कहे प्रेम तो वतन से करो, कोई कहे मां बाप से करो, कोई कहे शादी के बाद करो ,कोई कहे धोखा है, कोई
कोई कहे की प्रेम नहीं छिछोरापन है, कोई कहे प्रेम नहीं वासना है, कोई कहे प्रेम तो वतन से करो, कोई कहे मां बाप से करो, कोई कहे शादी के बाद करो ,कोई कहे धोखा है, कोई कहे सत्य है, कोई कहे ईश्वरीय अनुभूति है, कोई कहता है कि 'प्यार दोस्ती है' कोई कहे 'केमिकल लोचा' तो कोई मानसिक बीमारी भी मानता है। इस पुस्तक में भी आपको इसके अलग अलग रूप अलग अलग कोण से देखने को मिलेंगे ,कुछ को देखने के लिए शायद कई कोण एक साथ बनाने पड़ें, या फिर सही और गलत का निश्चय करना कठिन हो जाए। प्रेम की समझ आयु और अनुभव के अनुसार बदलती रहती है। प्लूटॉनिक, कैमिकल, उपयोगितावादी, रहस्यवादी, अधिकारवादी, समझौतावादी में से प्रेम के जिस भी रूप को आप आदर्श मानें लेकिन इन सब रूप का सामना कभी ना कभी हो ही जाता है।
माँ के प्रति भावनाएं व्यक्त करते हुए शब्द समाप्त हो जाते हैं, विशेषण समाप्त हो जाते हैं, प्रतिमान पुराने लगने लगते हैं और एक विवशता कि स्थिति उत्पन्न हो जाती है जहां व्यक्त बहु
माँ के प्रति भावनाएं व्यक्त करते हुए शब्द समाप्त हो जाते हैं, विशेषण समाप्त हो जाते हैं, प्रतिमान पुराने लगने लगते हैं और एक विवशता कि स्थिति उत्पन्न हो जाती है जहां व्यक्त बहुत कुछ करना होता है पर व्यक्त करने के सभी माध्यम समाप्त हो चुके होते हैं। माँ खुद एक अपरिमित संसार है भावनाओं का और इस पुस्तक के माध्यम से मैंने उस त्याग को वैचारिक अभिव्यक्ति देने की कोशिश की है जो इस रहस्यमय संसार की नींव में गढ़ा हुआ है।
दिल्ली में पढ़ने वाले अधिकतर लड़के जिस तरह के पीजी में रहते हैं वैसा ही एक पीजी मुझे भी मिल गया। तीसरी मंजिल पर 7×8 Read More...
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